साल 2015 से पैसों का घोटाला करके 72 घोटालेबाज देश से फरार हो गए है। पर सरकार उनसे पैसा वसूल करने मे नाकाम रही है। वही दूसरी तरफ 6 सालों मे 6 गुना बढ गया बैंको का एनपीए(NPA), जिसकी वजह से बैंकिंग सेक्टर(Banking Sector) बहुतही बुरे दौर से गुजर रहा है। अगर इसी तरह से चलता रहा तो क्या भारत के बैंक डूब जायेगे?
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश मे विकास की बात करते 2014 चुनाव जीतकर आये। जिस तरहा से उनका चुनावी प्रचार हुआ था, उससे तो ऐसा लग रहा था की सच मे देश का कुछ भला होने वाला है। मगर यह उस फेयर एण्ड लवली और संतूर साबुन के विज्ञापन जैसा सपना हो गया, जिसका दावा तो होता है की आप गोरे और जवान हो जाओगे पर अभी तक कोई महिला उससे गोरी और जवान हुई नहीं है।
देश के हालात 2014 के मुकाबले ओर बुरे हो गए। पूरे देश का बैंकिंग सिस्टम ध्वस्त होने की कगार पर है। बैंको का एनपीए 6 गुना बढ़ गया है। सारे देश के घोटकेबाज देश का पैसा लेकर विदेश मे जा के बस गए है। इन घोटालेबाजों के खिलाफ बस अभी तक जांच पड़ताल ही शुरू है, कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
क्या सरकार को पता था?
मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेर्स(Ministry Of External Affairs) के अनुसार देश के 72 घोटलोबाजों को विदेश से भारत लाने की कोशिश सरकार कर रही है। पर सवाल यह उठता है की यह घोटालेबाज घोटाला करके विदेश कैसे भाग जाते है? जहा तक कहा जाये की लोग कोरोना लॉकडाउन मे शहर के एक एरिया से दूसरे एरिया नहीं जा पाए बिना सरकार की इजाजत के तो यह सब घोटालेबाज बगैर सरकार की इजाजत के विदेश कैसे भाग गए?
क्या सरकार को पता नहीं था की यह लोग देश के बाहार भाग सकते है? क्या सरकार को पता नहीं था की इन्होंने घोटाले किए थे? क्या सरकार की मर्जी से यह सब लोग देश के बाहार भाग गए?
क्युकी इतने बडे घोटाले करके भागना इतना आसान तो नहीं होगा की बिना सरकार को बताये देश के बाहार निकल गए।
घोटालेबाजों की लिस्ट।
घोटालेबाज जो देश का पैसा लेकर विदेश भाग गए उनमे विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी, नीशाल मोदी, मेहुल चोकसी, कमलेश पारेख, पुशपेश बैद, आशीष जोबनपुत्रा, सनी कालरा, संजय कालरा, एसके कालरा, आरती कालरा, वर्षा कालरा, निलेश पारेख, एकलव्य गर्ग, विनय मित्तल, सब्या सेठ, राजीव गोयल, अलका गोयल, रितेश जैन, हितेश पटेल, नितिन जयन्तीलाल संदेसरा आदि व्यक्ति शामिल है।
बैंकों का बढ़ता हुआ एनपीए(NPA)।
बैंक ग्राहक को लोन देता है, पर अगर दिया हुआ लोन का प्रिन्सपल या ब्याज का पैसा 90 दिन से ज्यादा दिन तक वापिस नहीं आए और जिसने लोन लिया है वह पैसा लौटना बंद कर दे तो उस लोन को एनपीए(NPA) – नॉन पेरफॉर्मीग ऐसेट घोषित किया जाता है।
आरटीआई जानकारी के अनुसार 31 मार्च 2014 मे इंडियन बैंक का एनपीए 8068.05 करोड रुपये से बढ़कर 31 मार्च 2020 तक 32,561.26 करोड रुपये बढ गया है। वही बैंक ऑफ बड़ौदा का एनपीए(NPA) मार्च 2014 मे 11,876 करोड था वह दिसम्बर 2019 मे बढ़कर 73,140 करोड हो गया है।
बैंक ऑफ बड़ौदा ने अप्रैल 2018 से 29 फरवरी 2020 तक एसएमएस अलर्ट शुल्क के जरिए 107.7 करोड रुपये कमाए है,
2017 के बाद बैंको के बढे घाटे।
रेटिंग एजेंसी इकरा के अनुसार 2017-18 मे देश का सबसे बडा बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(SBI) ने 40,196 करोड मूल्य के एनपीए(NPA) कर्ज को बट्टे खाते मे डाला है। सरकारी क्षेत्र की बैंक का साल 2017-18 मे 1.20 लाख करोड एनपीए(NPA) को बट्टे खाते मे डाला है।
सरकारी क्षेत्र(Public Sector Bank) के कुल 21 बैंको ने साल 2016-17 तक मुनाफा कमाया था पर साल 2017-18 मे उन्हे 85,370 करोड रुपये का घाटा हुआ था।
एनपीए(NPA) को बट्टे खाते मे डालने से एनपीए बैंक की बैलन्स शीट का हिस्सा नहीं रह जाता। वर्ष 2016-17 मे सार्वजनिक बैंको ने 81,683 करोड के एनपीए को बट्टे खाते मे डाल दिया था। पर इसी अवधि संचयी आधार पर 473.72 करोड का एकीकृत शुद्ध लाभ हुआ था।
कॅनरा बैंक ने 8,310 करोड, पंजाब नैशनल बैंक ने 7,407 करोड, बैंक ऑफ इंडिया ने 9,093 करोड , बैंक ऑफ बड़ौदा ने 4,948 करोड, इंडियन ओवरसिज बैंक ने 10,307 करोड, आईडीबीआई बैंक ने 6,632 करोड, इलाहाबाद बैंक ने 3,648 करोड रुपये के एनपीए(NPA) को 2017-18 मे बट्टे खाते मे डाला है।
एनपीए(NPA) की वजह से पूरा बैंकिंग सिस्टम का ढांचा ही खराब हो गया है, जिससे बैंक के हालात खराब होकर डूबने की कगार पर आ गए है। जो घोटालेबाज 2015 के बाद देश से भाग गए है उन्ही की वजह से बैंक का एनपीए(NPA) बढा हुआ है और बैंक की हालत खराब हो गई है। दूसरा जो कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया है वह भी बैंक के डूबने के लिए जिम्मेदार है।
यह बैंको मे रखा आम नागरिक का ही पैसा है जो इन घोटालेबाजों का घोटाला छुपाने के लिए उपयोग मे लाया जा रहा है, जिससे बैंक की हालत खराब हो रही है।
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