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अर्णव गोस्वामी और 55 जर्नलिस्ट पर कारवाई। क्या मुक्त पत्रकारिता (Free Press) पर प्रहार हुआ है?

भारत मे लॉकडाउन के दौरान 55 जर्नलिस्ट को गिरफ्तार, धमकाया, मारा-पीटा गया, एफआईआर दर्ज करा दी गई, जो अपनी जान जोखिम मे डालकर रेपोर्टिंग कर रहे थे। तब सरकार उनके पक्ष मे नहीं आयी। पर एक अर्णव गोस्वामी को महाराष्ट्र मे गिरफ्तार किया तो सरकार के लोग उसके पक्ष मे आ गये। क्या मुक्त पत्रकारिता का मतलब सिर्फ सरकार के पक्ष मे लिखना या बोलना ही हो गया है ?

न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर

रिपब्लिकन टीवी के मैनिजिंग डायरेक्टर और संपादक अर्णव गोस्वामी को महाराष्ट्र मे गिरफ्तार किया गया। रायगढ़ की पुलिस टीम ने अर्णव को मुंबई मे उनके घर से हिरासत मे ले लिया। अर्णव पर इन्टीरीअर डिजाइनर और उसकी माँ को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला है।

फ्री प्रेस और लोकतंत्र।

गिरफ़्तारी के बाद अमित शाह ने ट्वीट कर के कहा की “कोंग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने रिपब्लिक टीवी और अर्णव गोस्वामी के खिलाफ अपने पावर का गलत उपयोग करते हुये व्यक्ति की स्वतंत्रता पर और गणतंत्र के चौथे खंबे पर प्रहार किया है। जो हमे आपातकाल की याद दिलाती है।“

स्मृति ईरानी ने कहा है की “जो फ्री प्रेस मे अर्णव के साथ खड़े नहीं है, वह फैशिज़म के सपोर्ट मे है। अगर आप अर्णव के साथ नहीं है तो जब आप पर ऐसा होगा तो आपके साथ कौन खड़ा होगा?”

प्रकाश जवाडेकर ने कहा की “महाराष्ट्र मे मुक्त पत्रकारिता पर हुये प्रहार की निंदा करते है। यह प्रेस के साथ व्यवहार करने का तरीका नहीं है। यह हमे आपातकाल की याद दिलाता है, जहा प्रेस के साथ ऐसा व्यवहार होता है।“

अमित शाह, स्मृति ईरानी और प्रकाश जवाडेकर ने अर्णव गोस्वामी के पक्ष मे बोल रहे है। जब की अर्णव गोस्वामी को अपने पर्सनल मामले मे गिरफ्तार किया गया है।

55 पत्रकार को लॉकडाउन मे टारगेट किया गया था।

The Right and Risk Analysis Group (RRAG) ने अपने रिपोर्ट मे कहा है की भारत के मीडिया मे कोविड 19 के लॉकडाउन के दौरान 55 जर्नलिस्ट को गिरफ्तार, धमकाया, मारा-पीटा गया, एफआईआर दर्ज करा दी गई, जो अपनी जान जोखिम मे डालकर फ्रीडम ऑफ प्रेस के तहत 25 मार्च से 31 मई  तक रेपोर्टिंग कर रहे थे।

सबसे ज्यादा मीडिया के व्यक्तियो पर प्रहार उत्तर प्रदेश मे 11 जर्नलिस्ट, जम्मू कश्मीर मे 6 जर्नलिस्ट, हिमाचल प्रदेश मे 5, तमिलनाडु, वेस्ट बंगाल, ऑडिशा, महाराष्ट्र मे प्रति राज्य 4, पंजाब, दिल्ली, मध्य प्रदेश, केरल मे प्रति राज्य 2 पे तो अंडमान निकोबार, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छतीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, नागालैंड, तेलंगाना मे प्रति राज्य 1 जर्नलिस्ट पर ।

RRAG के रिपोर्ट मे आगे कहा की भारत सरकार ने कोरोना के चलते फ्री प्रेस को गलत रेपोर्टिंग के नाम पर दबाया है। जो सरकार की खामिया लोगों के सामने ला रहे थे, जिसमे पीपीई किट, भ्रष्टाचार, मजुदूरों की भुखमरी जैसे मुद्दे शामिल थे।

जब इन 55 पत्रकारों को पर सरकार के द्वारा गिरफ्तार किया गया, धमकाया गया, मारा गया तब कहा थे अमित शाह, स्मृति ईरानी, प्रकाश जवाडेकर। क्या उस वक्त मुक्त पत्रकारिता(Free Press) पर प्रहार नहीं हो राहा था? क्या तब आपातकाल जैसी स्थिति नहीं थी?

अर्णव गोस्वामी और 55 पत्रकार।

जीन पत्रकारों को कोविड 19 मे लॉकडाउन के दौरान टारगेट किया गया था वह पत्रकारिता कर रहे थे। वो लोगों के हक की बातों को लोगों तक पहुचा रहे थे। भारत सरकार का सिस्टम कैसे असफल हो राहा है, वह दिखा रहे थे। इसलिये उनको टारगेट किया गया।

जबकी अर्णव गोस्वामी अपने आपसी व्यवहार मे हुये मामले मे गिरफ्तार हुये है। इस मामले का शायद ही पत्रकारिता से संबंध हो। पर यह अर्णव, सरकार की अच्छाई लोगों तक पोहोचाने वाला तथा बुराई छुपाने वाला एक पत्रकार है।

एक पत्रकार जिसकी वजह से दो लोगों ने आत्महत्या कर ली, जो अपने स्टूडियो से लोगों को कुछ भी आरोप करता है तो अगर उसे गिरफ्तार किया गया तो कैसे मुक्त पत्रकारिता पर प्रहार हुआ है?

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