महाराष्ट्र के राज्यपाल ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मंदिर खोलने के लिए चिठ्ठी लिखी। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओ ने धार्मिक स्थल खोलने के लिए प्रदर्शन किया तथा शिर्डी मे साधु संत अनशन पर बैठ गए है। लेकिन जब लॉकडाउन से पूरी आजादी छीनी गई थी, तब किसी ने आंदोलन नहीं किया और नहीं किसी साधु संतों ने अनशन किया। बीजेपी कार्यकर्ताओ और साधु संतों को मंदिर खुलवाने की इतनी जल्दी क्यू है?
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर
गवर्नर कोश्यारी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखी, जिसमे मंदिर खोलने की बात कही गई है। चिट्ठी मे कहा गया है को “यह कैसी विडंबना है जो एक तरफ सरकार बार, रेस्टोरेंट और बीच खुलने की अनुमति देती है वही दूसरी तरफ देव और देवी को लॉकडाउन मे रहने का दंड देते है। आप हिन्दुत्व के मजबूत मतदाता है मुख्यमंत्री बनने के बाद अयोध्या जाकर आपने श्रीराम के प्रति अपने समर्थन को सार्वजनिक किया था। आप आषाढ़ एकादशी को पंढ़रपुर के विठ्ठल रुक्मिणी मंदिर गए और पूजा की। पर मुझे हैरानी है की क्या धर्मस्थलों का खोलना टालते जाने का क्या कोई ऐसा देव आदेश आपको मिला है या फिर आप अचानक सेक्युलर हो गए है, जिस शब्द से आपको नफरत है।
सेक्युलर भारत।
भारत का संविधान के अनुसार भारत एक सेक्युलर स्टेट है, जहा सरकार का कोई आधिकारिक राजधर्म नहीं है। वहा पर सवैधानिक राज्यपाल पद पर बैठ कोश्यारी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को हिन्दुत्व की बात करके सेक्युलर के विरुद्ध बताते है, यह तो पूरी तरहा से संविधान विरोधी बात है। जिस दिन कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री की शपत लेता है उस दिन वह सेक्युलर हो जाता है। एक राज्यपाल का इस तरह से मुख्यमंत्री को पूछना कितना उचित है?
जब कोई व्यक्ति सविधानिक पद पर नियुक्त होता है तो वह किसी धर्म का या किसी पार्टी का नहीं होता है, वह व्यक्ति पूरे देश अथवा राज्य का होता है। किसी एक धर्म का पक्ष लेना संविधान के विरुद्ध है।
संविधान के विरुद्ध गतविधि।
महाराष्ट्र के गवर्नर और मुख्यमंत्री के बातों से तो ऐसा लगता है की यह लोग पूरी तरहा संविधान के विरुद्ध है। केंद्र की सरकार बोलती है हम हिन्दुत्व वादी है और राज्य की सरकार बोलती है हम भी हिन्दुत्व वादी है पर भारत का संविधान कहता है की देश सेक्युलर है। इन बातों से कही देश का संविधान तो खतरे मे नहीं आ गया। पता चला की अचानक एक रात को 8 बजे घोषणा हो जाए की आज से देश हिन्दुराष्ट्र बन गया है।
हिन्दुत्व वादी होने का यह मतलब है नहीं की आप सेक्युलर के खिलाफ हो जाओ, पूरे देश मे सबको अपने धर्म से चलने की आजादी है। पर सरकार का इस तरह एक धर्म का पक्ष लेना कितना उचित है?
पहले भी हुआ था संविधान को विरोध।
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद घटना समिति के बहुसंख्य सदस्यों ने और विदेशों के विचारवंतों ने संविधान की तारीफ की थी। पर भारत मे कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया था, जिसमे लक्ष्मीनारायण साहू, रामनारायण सिंह, टी. प्रकाशम्, डॉ रघुवीर, हुकूमसिंग, लोकनाथ मिश्र आदि घटना समिति के सदस्यों ने संविधान मे हिन्दू संस्कृति का प्रतिबिंब नहीं है करके नाराजी व्यक्त की थी। घटना समिति के बहार मुख्य रूपसे टिकाकार गोलवलकर गुरुजी थे।
डॉ आंबेडकर और अनेक घटना तज्ञों ने घटना समिति मे और घटना समिति के बाहर टीका को जवाब दिया था। पर कई लोगों का इससे समाधान नहीं हुआ था, वह लोग आज भी अस्तित्व मे है और वही लोग संविधान बदलकर हिन्दुराष्ट्र बनाने की बात करते है।
कोरोना केसेस नहीं बढ़े।
आगे गवर्नर कोश्यारी ने कहा की दिल्ली समेत देश के दूसरे हिस्सों मे जून के आखिर तक धर्मस्थल फिरसे खोल दिए गए। इन जगह से कोरोना केस बढ़ने के मामले भी नहीं आए।
इस से तो यही जाहीर हो रहा है की धार्मिक स्थलों पर कोरोना केसेस कम हो गए है और धार्मिक स्थल शुरू कर देने चाहिए। शिक्षा और स्वास्थ से हमे जरूरी है मंदिर का खुलना। जब केसेस बढ़ ही नहीं सहे तो पूरा देश पहले की तरह नॉर्मल कर देना चाहिए।
क्या मंदिर खुलने चाहिए।
सब तरफ से एक ही सवाल या रहा है, जब दारू की दुकान खुल सकती है तो मंदिर क्यू नहीं खुलने चाहिए? तो इसका जवाब यह है की जिस तरहा दारू से सरकार को मुनाफा होता है तो अगर मंदिर से भी मुनाफा होता है तो मंदिर जरूर खुलने चाहिए।
बाकी जो भगवान पर आस्था रखते है, उनको भगवान से मिलने के लिए मंदिर जाने की जरूरत नहीं है। उनकी आराधना तो घर से भी हो सकती है क्युकी भगवान मंदिर मे नहीं तो लोगों के दिल मे होते है।
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