डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर स्मारक समिति, नागपूर ने कोरोना का बहाना करके बिना बौद्ध अनुयायी से पूछे दीक्षाभूमी कार्यक्रम रद्द कर दिया है। इसके लिए सिविल राइट्स प्रोटेक्शन सेल ने समिति को नोटिस भेजा था। क्या इतने सालों से चल राहा कार्यक्रम रद्द होना चाहिए?
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर
दीक्षाभूमी के कार्यक्रम को देश भर के लाखों बौद्ध अनुयायी आते है। यह स्थान दुनियाभर के बौद्ध अनुयायी के लिए श्रद्धास्थान है। इस कार्यक्रम के लिए लोग राह देखते रहते है, ताकि इस कार्यक्रम का आनंद उठा सके। जिसके चलते समिति ने कार्यक्रम रद्द का निर्णय लेना कदापि योग्य नहीं है।
स्मारक समिति की भूमिका मे संदेह।
जिस तरहा से कोविड 19 का कारण आगे करते हुये समिति ने कार्यक्रम रद्द की घोषणा की है, जब की इस वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने पूरी और अहमदाबाद मे जगन्नाथ पूरी रथ की यात्रा की अनुमति दी है और साथ मे अयोध्या मे राममंदिर के कार्यक्रम को अनुमति दी गई थी। अगर ये कार्यक्रम हो सकते है तो दीक्षाभूमी का कार्यक्रम क्यू नहीं हो सकता? क्या समिति लोगों के श्रद्धास्थान से खिलवाड कर अपनी मनमानी करेगी।
वैसे भी कोरोना पैशन्ट का रिकवरी रेट काफी ज्यादा है। इसलिए इससे डरने की आवश्यकता नहीं है। जितना डरोगे कोरोना उतना बड़ा होता जायेगा। एक बार कोरोना के चपेट मे आ गये तो अपना शरीर ऐन्टीबाडी बना देता है जो इस कोरोना वायरस से हमारी रक्षा करती है। ऐन्टीबाडी कोरोना वायरस को खतम कर देती है।
कोरोना मे भीड़ होने का दिया कारण।
अगर भीड़ का ही कारण लिया जाए तो जब से लॉकडाउन हुआ है तबसे कई जगह भीड़ हुई है पर इससे कोरोना का कुछ खास असर नहीं हुआ। पहली भीड़ तो थाली बजाने के कार्यक्रम मे मार्च महीने मे ही हुई थी, जिसमे लोग ढोल ताशे लेकर रस्ते पे निकल पड़े थे। मजदूर रोजी-रोटी नहीं मिल रही थी तो भीड़ मे अपने गाव वापस चले गये। उसके बाद राम मंदिर के निर्माण मे भी लोग इकट्ठा हुये थे, जोरों शोरों से यह कार्यक्रम चला। अभी फार्म बिल और लेबर बिल के समय फार्म बिल और लेबर बिल के विरोध मे काफी किसान और मजदूर इकठ्ठा हुये थे, जबकि यह निर्णय सरकार ने इस कोरोना काल मे नहीं लेना चाहिए था। हाथरस केस मे भी इंसाफ के लिए कई सारी भीड़ इकठ्ठा हुई थी।
इतनी सारी भीड़ पिछले कुछ महीनों से इकठ्ठा हुई है तो दीक्षाभूमी पर भीड़ इकठ्ठा होने मे परेशानी किसको हो रही है? दीक्षाभूमी, स्मारक समिति की जहागिर नहीं है जो वह अपने मनमाने तरीके से उस पर रोक लगा सके। अगर समिति कार्यक्रम की जिम्मेदारी नहीं ले सकती तो उन्हे समिति के पद पे रहने का कोई अधिकार नहीं है।
घर मे ही बौद्ध वंदना और बाबासाहेब को अभिवादन करने को कहा।
रेशीमबाग़ मैदान या डॉ हेडगेवार स्मृति भवन मे विजयादशमी का कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कुछ 50 चुनिंदा स्वयंसेवकों के उपस्थिति मे होने जा रहा है और बाकी लोग उस कार्यक्रम को ऑनलाइन देखेंगे और उसमे ऑनलाइन सहभागी होंगे। अगर यह कार्यक्रम ऑनलाइन हो सकता है तो दीक्षाभूमी का भी कार्यक्रम ऑनलाइन होना चाहिए जिसमे समस्त बौद्ध अनुयायी भाग ले सकेंगे।
सिविल राइट्स प्रोटेक्शन सेल की याचिका कोर्ट मे दायर।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ मिलिंद जीवाने ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपूर खंडपीठ मे याचिका का दायर कर अक्टूबर मे दीक्षाभूमी पर दो कार्यक्रमों की अनुमति मांगी है, जिसमे 14 अक्टूबर का धम्मदीक्षा दिवस और 24 से 26 अक्टूबर तक दशहरे के मौके पर कार्यक्रम की अनुमति की कोर्ट से प्रार्थना की है।
याचिका मे कोरोना संक्रमण की प्रामाणिकता और मृत्यु दरों पर भी संदेह जताया है। याचिककर्ता ने विभागीय आयुक्त, जिल्हाधिकारी, मानपा आयुक्त और पुलिस पर भी जानबुझकर आयोजन की अनुमति न देने का आरोप लगाया है।
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दीक्षाभूमी यह बौद्धओंका श्रद्धा केंद्र है किसीं चिंनउंडे लोगोने निर्णय लेना ठीक नहीं है। दीक्षाभूमी लगातार चोबिस घंटे शुरु रखे।