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1978 और 2016 कि नोटबंदी से क्या कालाधन कम हुआ?

2016 मे जिस तरह से नोटबंदी की गई थी, ठीक वैसी ही नोटबंदी 1978 मे जनता पार्टी की सरकार मे की गई थी। उस वक्त भी नोटबंदी असफल हुई थी और 2016 मे भी नोटबंदी असफल हो गयी। क्या नोटबंदी भी बाकी जुमलों की तरहा एक जुमला था जो लोगों तकलीफ देकर चला गया। क्या नोटबंदी से कालाधन कम हुआ?

न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर

8 नवंबर 2016 को रात के 8 बजे जब देश के कई परिवार खाना खा रहे थे या बना रहे थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीवी पर अचानक आते है और पूरे देश को संबोधित करते है। घोषणा मे 8 नवंबर की आधी रात से देश मे 500 और 1000 रुपये के नोटों को खत्म करने का ऐलान किया जाता है। इसका उदेश्य काला धन पर नियंत्रण और जाली नोटों से छुटकारा पाना था।

जानकारी के अनुसार, नोटबंदी की योजना की खबर कुछ चुनिंदा लोगों को थी। इनमे मुख्य सचिव नृपेन्द्र मिश्रा, पूर्व आरबीआई गवर्नर, वित्त सचिव अशोक लवासा, आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकान्त दास और वित्तमंत्री अरुण जेटली।

1978 और 2016 की नोटबंदी की समानता।

जनता पार्टी के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 1000, 5000 और 10000 की नोटों को बंद करने की घोषणा की थी। नोटबंदी का उदेश्य काला धन को अर्थव्यवस्था से बहार करना था। नोटबंदी का कार्यक्रम गुप्त रखा गया था। इस कार्यक्रम को रेडियो द्वारा मोरारजी देसाई ने लोगों तक पहुचाया  गया था।

भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 की नोटों को बंद करने की घोषणा की थी। इसका भी उदेश्य काला धन को निकालना था। नोटबंदी के इस कार्यक्रम को भी गुप्त रखा गया था। इस कार्यक्रम को टीवी के द्वारा नरेंद्र मोदी ने लोगों तक पहुचाया गया।

नोटबंदी की असमानता।

मोरारजी देसाई को आरबीआई गवर्नर का साथ नहीं मिला था। गवर्नर पटेल का कहना था की लोग ज्यादा देर तक काला धन कॅश के रूप मे नहीं रखते। इससे सिर्फ विपक्षी पार्टी के फंड को घुमाना होगा। इसमे आम लोगों पर कोई फरक नहीं पड़ा क्युकी उतने बड़े नोट आम नागरिकों के पास नहीं थे।

नरेंद्र मोदी को आरबीआई गवर्नर का साथ और पूरा सपोर्ट मिला। 500, 1000 की नोटों के कारण लोगों की जिंदगी मे काफी प्रभाव गिरा। पैसे के लिए तरस गये थे लोग। पैसे न होने के कारण राशन भी नहीं मिला लोगों को। कई लोगों की तो लाइन मे लगकर जान चली गयी। लेकिन सरकार ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली।

काला धन का निर्माण।

नोटबंदी से आम नागरिकों को हासिल तो कुछ नहीं हुआ पर तकलीफ ज्यादा हुई। 2016 की नोटबंदी सबसे बड़ा असफल काम है भारतीय जनता पार्टी का। आरबीआई के डाटा के अनुसार 99 फीसदी 1000 के नोट वापस आ गये है, जो इसकी असफलता और सरकार की अदूरदर्शिता को दर्शाते है।

काला धन तो आया नहीं पर नया धन छपवाने के लिए पास का धन खर्च करना पड़ा। जब सरकार को पता था की इससे आम नागरिकों पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ने वाला था तो नोटबंदी का निर्णय लेना उचित नहीं था। 1000 की नोट बंद करके 2000 की नोट छपवा दी, क्या इससे काले धन को सफेद करने मे लोगों को आसानी नहीं हुई? काला धन ही निकालना था तो बड़े नोट नहीं छपवाने चाहिए थे।

भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने 2014 मे कहा था की ‘आम नागरिक, जो अनपढ़ है और बैंकिंग सुविधाओ तक जिनकी पोहोच नहीं है, ऐसे लोग इस तरह के उपायों से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। मुख्य रूप से समय के साथ स्वयं जनता 2000 के नोट को चलन से बहार कर देगी, क्युकी कम मूल्य की वस्तु के लिए दुकानदार 2000 की नोट नहीं लेंगे। परिणाम स्वरूप 2000 के नोट की जमाखोरी होगी या काला धन का निर्माण होगा।‘

जहा काला धन खतम करने की बात थी, वही 2000 की नोट से काला धन का निर्माण हुआ। नोटबंदी के दौरान कई लोगों ने काला धन सफेद करने की स्कीम भी चलायी थी, जिससे ओर काला धन निर्माण हुआ। नोटबंदी बिना सोचा समझा भारतीय कार्यक्रम था, जिसमे लोगों के बलिदान की उम्मीद की गई थी।

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