japanese milf boxing trainer sex all japanese pass indiansexmovies.mobi woman big boob nice vagina hairy beauty figure old anal porn kunwari ladki ke bij nikalne lage chhote chhote bf

लॉकडाउन की वजह से चूल्हा जलाना हो रहा मुश्किल

कोविड 19 को लेकर हुये लॉकडाउन की वजह से देश और समाज पर सामाजिक और आर्थिक परिणाम हुये, जो दिलदहला देने वाले है, जिसका देश और समाज पर काफी बुरा असर पड़ा है। आज लोगों को दो वक्त की रोटी भी नसीब होना मुश्किल हो रहा है ।

न्यूज मेडियेटर्स-आकाश वनकर

मार्च महीने से देश मे लॉकडाउन शुरू हुआ , जो की चंद घंटों की चेतावनी पर पूरे देश मे लागू किया गया था । पूरा देश संभ्रम मे पड़ गया था की क्या बंद रहेगा और क्या शुरू रहेगा? जिसकी वजह से किराना दुकानों के सामने लंबी कतार लग गयी, जहा सोशल डिस्टनसींग का पालन करना था, वही भीड़ एक दूसरे से टकराने लगी क्युकी डर था के अगर सब कुछ बंद हो गया तो कल खाएंगे क्या? जिससे लोग दुकानों की तरफ बढ़ने लगे। लोगों ने तो दो-तीन महीने का सामान एक साथ उठा लिया, चाहे फिर दूसरे लोगों को मिले न मिले। जिनके पास पैसे थे वह तो सामान ले जा के घर मे खुश रहने लगे, अपनी बीवी-बच्चों के साथ। सोशल मेडिया पे मैसेज आने लगे की लॉकडाउन मे बड़ा आनंद आ रहा है , साधा जीवन जी के और साधा खाना खा के।

उसी समय एक ओर देश का बड़ा हिस्सा दुविधा मे पड़ गया की ये क्या हो रहा है? क्युकी जो कुछ हो रहा था उसको समजने के लिए न तो उनके पास वक्त था और न इच्छाशक्ति। देश के उस बड़े हिस्से को रोज मर्रा के कामों से फुरसत ही कहा थी। उनका तो एक लक्ष था की आज कुछ कमायेंगे तो कुछ खायेंगे नहीं तो भूखे ही सो जायेंगे। यह देश का वो हिस्सा जो देश की बुनयाद बनाता है, जिसके हाथ लगे सिवा कोई भी काम पूरा नहीं होता है, वो है इस देश का मजदूर ।

इस लॉकडाउन की वजह अगर किसी को सबसे बड़ा नूकसान हुआ है तो वो है देश के सारे मजदूरो का , जो शाम के खाने के लिए सुबह को काम पे जाते है। काम पे जायेंगे तो खायेंगे नहीं तो भूखे ही सो जायेंगे, ऐसी स्थिति है इनकी।

जान गवानी पड़ी मजदूरों को।

लॉकडाउन के दौरान जो इनका बुरा हाल हुआ वो शायद की देश के किसी दूसरे वर्ग का हुवा होगा। सरकार ने तो आदेश दे दिया की जो जहा है वो वही रहे, पर खायेंगे क्या और रहेंगे कैसे इसके बारे मे कुछ नहीं कहा। जिस समय लोग घर से निकलने के लिए डरते थे उस समय यह लोग बिना किसी सहारे के अपने गाव की तरफ निकल पड़े थे। वह गाव भी कोई पास नहीं थे, उनको जाना था एक राज्य से दूसरे राज्य , जो की काफी मुश्किल का काम था, पर हिम्मत जूटा के निकल पड़े। पर रास्ते मे खड़ी पुलिस ने उनको डंडों से मारा, उनको तरह-तरह की सजा दी जैसे किसी को रेंगाने लगाया तो किसी को सजा के तौर पर कुछ अलग करवाया। पर रहने के लिए छत और खाने के लिए खाना नहीं दिया।

पुलिस की डर से कई लोग रेल्वे लाइन से जाने लगे पर नियति ने उन्हे वहा भी नहीं छोडा, मौत के घाट उतार दिया। औरंगाबाद के पास की घटना मे करीब 15 मजदूर कट के मरे थे। इस दौरान ऐसी अनेकों घटनाए हुई जिसमे मजदूरों को जान गवानी पड़ी। कदम कदम पर उन्हे रोक गया, मारा गया पर साथ किसिने नहीं दिया। कुछ एनजीओ ने मदत का काम किया पर वह भी पर्याप्त मात्रा मे नहीं था। उसमे काम से ज्यादा, फोटो सेशन ज्यादा थे, दिखावा था।

ऐसे वक्त मजदूरों का साथ देना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी होती है, जो सरकार ने नहीं निभायी। देश मे ईमर्जन्सी न होते हुये ईमर्जन्सी जैसा माहोल बना, जिसमे नागरिकों के मलभूत अधिकार छिन लिए गये। जब अधिकार छिन जाता है तब कैसा लगता है यह उन अधिकारी  वर्ग से पूछिए जो अधिकार होते भी कुछ नहीं कर पाते। सरकार अगर मजदूरों के लिए कुछ करती तो उन्हे अपने गाव के तरफ जाने की आस नहीं लगती। उनकी तो केवल रोटी, कपड़ा और रहने के लिया अस्थायी मकान इतनी ही जरूरत थी, जो पूरी नहीं हो पायी। जब सरकार एक कमजोर वर्ग का साथ नहीं दे सकती तो किसका साथ देगी?

वह सिलसिला अभी तक खतम नहीं हुआ है। आज भी मजदूरों के पास रोजगार नहीं है। यह सिर्फ माइग्रन्ट मजदूर की ही नहीं लोकल मजदूर की भी हालत ऐसी ही है। आज भी अगर शहर एवं गाव के मजदूर को देखते है तो उनके पास रोजगार उपलब्ध नहीं जो उनको उनकी जरूरत मिटाने के लिए पैसा दे सके। रोजगार मिलता भी है तो कभी कभी मिल राहा है, पर इससे घर चलाने मे, जरूरते पूरी करने मे पर्याप्त मात्रा मे नहीं है। यह हालत दिनो दिन बुरी होती जा रही है।

यह सिर्फ मजदूरों की ही कहानी नहीं है, शहर के लोअर मिडल क्लास मे भी वही कहानी है। घर के कमाने वाले आदमी की नौकरी चली गयी और काम नहीं मिल रहा है इसलिये घर की औरतों और बच्चों को काम पे जाना पड रहा है, वह भी कम पैसों पे, जिससे उनका घर चल सके, जीने के लिए संघर्ष करना पड रहा है। यहा बाकी का खर्चा तो अलग ही है सिर्फ पेट की भूख मिटाना भी मुश्किल हो रहा है। अगर स्थिति ऐसी ही चलती रही तो आने वाले दिनों मे देश बेहाल हो जायेगा और भुखमरी से मरने वालों की संख्या ज्यादा होगी, कोरोना के मुकाबले।

बड़े लोगों के बारे मे तो सब सोचते है कोई सरकार मजदूर के बारे मे भी सोचे। यह मजदूर ही है जो देश का भविष्य बनाते है, बिना इनके सब कुछ ठप्प हो जायेगा।

यह भी पढे : बीएसएनएल(BSNL) कर रहा 20000 कर्मचारियों की छटनी

यह भी पढे : निजीकरण(Privatisation) की शुरुवात किसने की और किस युग को निजीकरण का स्वर्ण युग कहा जाता है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *