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जनता के रोजगार और पेट पे वार।

भारत देश मे सरकार की नीतियों के कारण बेरोजगारी बढ़ी है। नये रोजगार निर्माण नहीं हो रहे है और मौजूदा रोजगार खतम हो रहे है। आज के दौर मे शहरी और ग्रामीण लोगों की बढ़ती हुई बेरोजगारी देश की बड़ी समस्या बनी हुई है। पूरा देश वैश्वीकरण का गुलाम बनने जा रहा है।

न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर

वैश्वीकरण(Globalization) की नीतियों के कारण देश मे बेरोजगारी का स्तर बढ़ा हुआ है, किसानों और मजदूरों को ही नहीं, बल्कि छोटे और मध्यम वर्ग के व्यापारी को भी आने वाले समय मे अनेक दिक्कतों का सामना करना पड सकता है। भारत देश ने पिछले 40 सालों से विश्व व्यापार संघटन(World Trade Organization) की नीतियों का समर्थन करते हुये उनकी हर नीति को देश मे लागू करने का प्रयाश किया और उसमे सफल भी हुये है। वैश्वीकरण के दबाव मे देश के लोगों का कितना अनहित हो राहा है, इसको नजरअंदाज किया जा राहा है। जिससे पूरे देश मे हाहाकार मचा हुआ है।

देश को आर्थिक मजबूत उसी समय कहा जायेगा जब देश का हर नागरिक आर्थिक रूप से मजबूत हो जायेगा। देश को शहर और ग्रामीण भागों मे बाट दिया तो, कुछ हद तक शहर के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध हुये पर ग्रामीण भागों के जो खेती और मजदूरी पर निर्भर है वह लोग आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं हुये। दिन ब दिन उनकी हालत बिगड़ती जा रही है। शहर मे भी जो मध्यम और गरीब वर्ग है उनकी आर्थिक हालत गिरती जा रही है। एक तरहा से जनता के रोजगार और पेट पर वार हो रहा है।

क्रय शक्ति(Purchasing Power) मे गिरावट।

आर्थिक स्थिति मे गिरावट आने की वजह से क्रय शक्ति मतलब खरीदने की क्षमता मे गिरावट आती है, इससे देश के विकास मे बाधा आती है। विख्यात अर्थशास्त्री डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ने कहा है की “देश के गोदामों मे कितना खाधान्य भंडारण करके रखा गया है, उसके आँकड़े मिलियन टन मे गिनकर देश की फूड सिक्युरिटी तय करना उचित नहीं है । इसके मुकाबले देश के प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक खाधान्य खरीदने के लिए जरूरी रोजगार उसे कितनी मात्रा मे उपलब्ध कराया गया है, इसे आधार मानकर जनता की फूड सिक्युरिटी निर्धारित की जानी चाहिए। अगर जनता के हाथों को रोजगार नहीं मिलेगा, उसको हाथों मे पैसा नहीं आने वाला होगा तो उस समय देश के गोदामों मे भरे अनाज के भंडार का जनता के लिए कोई उपयोग नहीं होगा। क्योंकि उसे खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं होंगे।“ क्रय शक्ति कम होने से मार्केट मे मंदी जैसा माहौल हो जाता है। गरीबी और भुखमरी बढ़ने लगती है।

रोजगार कम हुआ।

लोगों को आर्थिक रूप से समृद्ध कराने के दो ही मार्ग है, नये रोजगार निर्माण करना या जो रोजगार पहले से मौजूद है उसे टिकाके रखना। पर पिछले 20 सालों से सरकार इन दोनों रास्तों से रोजगार निर्माण करने और टिकाने मे असफल हुयी है और पिछले पाँच सालों से तो बेरोजगारी अपने चरम सीमा पर है।

मौजूदा हालातों मे सिर्फ ऑनलाइन खेती की उपज को बेचने और भंडारण करने के विचार के बजाय जरूरी खाधान्य खरीदने के लिए आवश्यक धन दिलाने वाला रोजगार लोगों को मिल रहा के नहीं, इस बात पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। लोगों को नये रोजगार देने पड़ेंगे और उसके मौजूदा रोजगार बचाए रखना होगा, इसके लिए व्यवसाय और सरकारी उद्योग-धंधों को संरक्षण प्रदान करना होगा।

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निजीकरण(Privatization) को रोकना होगा।

सरकार की नीतियों के कारण देश मे रोजगार निर्माण नहीं हो राहा है और मौजूदा रोजगार नष्ट हो रहा है। वैश्वीकरण और टेक्नॉलजी की वजह से रोजगार खतम हो राहा है और जितनी मात्रा मे नये रोजगार की जरूरत है उतनी मात्रा मे रोजगार निर्माण नहीं हो रहे है। इसलिए इस विषय पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। केवल सरकारी उद्योगों को बेचना इस समस्या का समाधान नहीं है। सरकारी उद्योग-धंधों को संरक्षण प्रदान करना होगा ताकि लोगों का रोजगार बच सके और देश के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध हो सके।

प्राइवेट कंपनी मे इतनी क्षमता नहीं है की वह पूरा रोजगार निर्माण कर सके। संघटित क्षेत्र से ज्यादा असंघटित क्षेत्र मे ज्यादा रोजगार है पर असंघटित क्षेत्र मे रोज रोजगार मिलेगा ही इसकी कोई शाश्वती नहीं रहती है। सरकार को सिर्फ लोगों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, देश के लिए खुद को भी कुछ करना चाहिए। आज देश के लोगों को पर खासकरके मजदूर वर्ग पर भूख से मरने की बारी आ रही है। अगर सरकार की नीतिया ऐसीही रही तो वो दिन दूर नहीं जब लोग अपने बेसिक जरूरते पूरी करने के लिए देश मे आतंक करना शुरू कर देंगे और इसकी जिम्मेदार पूरी तरहा सरकार ही होगी।

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