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सरकार ने कृषि विधेयक से कॉर्पोरेट कंपनीयो का किसान को लूटने का रास्ता किया साफ, जानिये कैसे?

संसद मे किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक और किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि समझौता विधेयक मंजूर हो गये। यह विधेयक किसानों से ज्यादा कॉर्पोरेट कंपनीयो का सशक्तिकरण और संरक्षण करेंगे ऐसा दिख रहा है।

न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर

केंद्र सरकार कह रही है की कृषि अध्यादेशों से कृषि क्षेत्र मे बड़ा परिवर्तन आयेगा, पर इन विधेयकों को मंजूर करने के लिए जो हंगामे हुये है उनसे तो नहीं लगता के इससे कोई बड़ा परिवर्तन आयेगा।

साल 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाने वाले सरकार का क्यू विरोध हो राहा है? क्यू किसानों को लग राहा के मंडिया छीनकर सरकार कॉर्पोरेट कंपनी को दे रही है?

किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक:

इस विधेयक मे सरकार कह रही है की हम ऐसा वातावरण का निर्माण करके दे रहे है जिसमे किसान और व्यापारी अपने पसंद से अपने उत्पाद की बिक्री और खरेदी कर पाएंगे। इसमे इलेक्ट्रॉनिक ट्रैडिंग और ट्रैन्सैक्शन प्लेटफॉर्म के जरिये कृषि उत्पाद की खरीदी और बिक्री की जाएंगी। अब कॉर्पोरेट कंपनी अपनी पसंद से खरेदी कर पायेंगी।

किसी भी राज्य मे खरीदी बिक्री।

अब एक राज्य का व्यापारी किसी भी दूसरे राज्य मे जाकर खरीदी और बिक्री कर पाएगा जहा उत्पाद निर्माण होता है, वहा से किसी भी राज्य मे उस उत्पाद को लेके जा सकता है। इसके लिए कोई बंधन नहीं होगा।

इसके पहले कुछ उत्पाद को दूसरे राज्य ले जाने के लिए बंधन होते थे, जो अब नहीं रहेंगे। इसमे कोई भी कॉर्पोरेट कंपनी किसी भी राज्य मे जाकर उत्पाद को खरीद और बेच सकती है। उन पर किसी भी तरहा का बंधन नहीं रहेगा।

व्यापारी का मुनाफा :

इसमे कोई भी व्यापारी किसान और कॉर्पोरेट कंपनी की बीचमे काम कर के मुनाफा कमा सकता है सिर्फ उसके पास पॅनकार्ड नंबर होना चाहिए।

हर व्यापारी जो लेन-देन करेगा उसे किसान का पैसा उसी दिन या जादा से जादा तीन कामकाज के दिन मे देना पड़ेगा।

अगर एक राज्य का व्यापारी दूसरे राज्य के किसान से माल खरीद लेता है तो क्या वह किसान जिसके पास अनाज उगाने के लिए पैसे नहीं रहते है वो इस व्यापारी से दूसरे राज्य पैसा लेने जायेगा या उस किसान का पैसा डूब जायेगा। यह सरकार ने क्लीर नहीं किया है।

इलेक्ट्रॉनिक ट्रैडिंग एण्ड ट्रैन्सैक्शन प्लेटफॉर्म।

इलेक्ट्रॉनिक ट्रैडिंग एण्ड ट्रैन्सैक्शन प्लेटफॉर्म एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहा ऑनलाइन खरेदी और बिक्री होगी। कोई भी व्यक्ति जिसके पास इनकम-टैक्स ऐक्ट, 1961 के तहत पॅनकार्ड नंबर है ऐसा व्यक्ति और संस्थाये इलेक्ट्रॉनिक ट्रैडिंग एण्ड ट्रैन्सैक्शन प्लेटफॉर्म का निर्माण करके चला सकते है जिसमे राज्यीय और आन्तरराज्यीय व्यापार हो सके पर इसके लिए कुछ टेक्निकल परमेटर्स है, जो पूरे करने पड़ेंगे।

इसमे तो कोई छोटा व्यापारी या किसान तो यह इलेक्ट्रॉनिक ट्रैडिंग एण्ड ट्रैन्सैक्शन प्लेटफॉर्म का निर्माण करके नहीं चला पाएगा तो इसमे पूरी तरह जो कंपनी टेक्नॉलजी काम कर रही है उसी का फायदा है। एक तरहा से टेक्निकल कॉर्पोरेट कंपनी के हवाले पूरा यह हो जायेगा। यह मार्केट पूरी तरह सरकार से मुक्त रहेगा। इसमे पूरी प्राइवेट सेक्टर की मनमानी चलेगी। मंडी की जगह यह सिस्टम आने वाले समय मे देश मे लागू होगा। हर कॉर्पोरेट अपनी ऑनलाइन मंडी बनाएगा।

टैक्स नहीं रहेगा।

इलेक्ट्रॉनिक ट्रैडिंग एण्ड ट्रैन्सैक्शन प्लेटफॉर्म पर राज्य कृषि उपज बाजार समिति या किसी अन्य राज्य विधि के अधीन कोई टैक्स नहीं लगेगा। यह पूरी तरह टैक्स फ्री रहेगी। धीरे धीरे मंडी सिस्टम को पूरी तरह से खतम कर दिया जायेगा।

किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि समझौता विधेयक :

फ़ार्मिंग अग्रीमेंट के तहत किसान और अग्री-बिजनेस फर्म, प्रोसेसर, व्होलसेलर, एक्सपोर्टेर या बड़ा रीटैलर से जोड़ा जायेगा, जिसमे किसान से यह कंपनीया अनाज या कोई दूसरा उत्पाद ले पाएंगे।

फ़ार्मिंग अग्रीमेंट।

फ़ार्मिंग अग्रीमेंट एक लिखित दस्तावेज रहेगा जिसमे उत्पाद सप्लाइ करने के टर्म्स एण्ड कंडिशन्स रहेंगे जैसे सप्लाइ का वक्त, क्वालिटी, ग्रैड, स्टैन्डर्ड, किमत और अन्य बाते लिखी रहेंगी।

अग्रीमेंट का कम से कम टाइम पीरीअड एक सीजन का रहेगा और ज्यादा से ज्यादा 5 साल का होगा।

एक छोटा किसान जिसके पास दो-चार ऐकर जमीन है वह फ़ार्मिंग अग्रीमेंट करेगा नहीं। उसको तो वही व्यापारी मिलेगा जो उसकी उपज कम किमत पर लेकर इन बड़ी कंपनी को बेचेगा क्युकी छोटा किसान अपनी उपज को बड़े किसान या व्यापारी की तरहा किमत मिलने तक स्टोर करके नहीं रख सकता या खर्चे के लिए पैसे चाहिए होते है तो छोटे किसान को तो अपनी उपज हरहाल मे कम किमत पर बेचना ही है। जिसके चलते यह विधेयक ज्यादातर किसानों के काम का है ही नहीं।

इसमे फायदा बड़े किसानों, बड़े व्यापारी और बड़ी कंपनी का ही है। खास करके बड़े कॉर्पोरेट कंपनी सीधे बड़े किसान से अग्रीमेंट करके उपज खरीद लेगी।

छोटे किसानों को अपनी उपज कम किमत पर बेचना या जमीन ही बेच देना यही मार्ग रह जाएंगे, इससे किसानों की आत्महत्या रुकेगी नहीं तो बढ़ेगी। इसकी जिम्मेदार पूर्णतः सरकार ही होगी।

उपज की किमत।

उपज की किमत तो किसान और कंपनी दोनों मिलकर तय करेगी। सरकार का इसमे कोई रोल नहीं रहेगा। जो पहले किसान को एमएसपी(Minimum Support Price) मिलती थी वह पूरी तरह से खतम हो जाएगी। शुरुवात मे तो कॉर्पोरेट कंपनी या व्यापारी से सही दाम मिल जायेगा पर लॉंग टर्म पे सही दाम मिलेगा इसकी कोई शाश्वती नहीं है, हो सकता है लागत से भी कम दामों मे फसल बेचनी पड़ेगी। प्राइवेट सेक्टर मे तो ऐसा ही होता है, शुरुवात मे लालच दिखाकर बाद मे लूट लेते है।

अगर किसान अपनी फसल उगा भी लेता है पर कंपनी अपनी क्वालिटी चेकिंग मे उस फसल को रिजेक्ट भी कर सकती है, इसमे तो नुकसान किसान काही होगा।

एक तरहा से देखा जाये तो दोनों विधेयक कॉर्पोरेट कंपनीयो के भलाई के लिए बनाये गये है, सिर्फ इसमे किसान की भलाई ऐसा नाम जोड़ा गया है।

पढे : कृषि विधेयक हंगामे के साथ राज्यसभा में मंजूर

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