पूर्वजों की जमीन-जायदाद बेचकर जो लड़का घर चलाता है, क्या वह लड़का काबिल होता है या निकम्मा होता है?
न्यूज मेडियेटर्स – किसी भी देश की अर्थव्यवस्था दो भागों मे बाटी जा सकती है। 1. सार्वजनिक क्षेत्र 2. निजी क्षेत्र। भारत देश 1947 मे आजाद होने के बाद देश के सामने अनेक समस्या थी जैसे भूकमरी , गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, जीडीपी कम होना, अनेकों बीमारिया का होना । एक उन्नत राष्ट्र बनने के लिए देश के सामने अनेक आर्थिक, सामाजिक, विकसात्मक और औद्योगिक चुनौतीया थी और इन सब समस्या से निपटने के लिए देश मे सार्वजनिक कंपनीया(PSE) स्थापित की गयी।
पहली पंचवार्षिक योजना इन्ही सब समस्या को छुड़ाने के लिए समाजवादी दृष्टिकोण के साथ बनाई गयी, जो मिश्र अर्थव्यवस्था थी, जिसमे पब्लिक और प्राइवेट दोनों के लिए प्रावधान था। सरकार ने बड़े उद्योगों, रेल्वे, पोर्ट, एयरपोर्ट, ऊर्जा और सूचना इन उद्योगों पर ध्यान दिया, जो देश के लिए पैसा बनाते थे, जिससे लोगों को कपड़ा, रोटी और मकान का प्रबंध होता था। वही पर बड़े उद्योगों मे खतरा जादा और रिटर्न कम होने की वजह से प्राइवेट कंपनीया इससे दूर रही।
सार्वजनिक उद्योगों से इकोनोमी मजबूत हो गयी थी।
यही सार्वजनिक उद्योगों से आज देश इतना बड़ा हो गया और हमारी इकोनोमी मजबूत हो गयी थी। इसीके आधार पर देश की गरिमा पूरे विश्व मे बढ़ी थी। 1970 मे सरकार ने कोयला, बड़े बैंक और इन्श्योरेन्स कंपनी को राष्ट्रीयकृत कर दिया। आजादी से लेकर अब तक भारत मे 300 से ज्यादा सार्वजनिक उद्योग(PSU) है। जो अपने देश को संभाले हुये है।
अब सरकार इन सब बनाये हुये सार्वजनिक उद्योगों को निजी कंपनी के हाथों मे देना चाहते है। जो उद्योग हमारे देश की शान है, उसे कुछ निजी हाथों मे देना कहा तक उचित है। यह तो सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को बेचने जैसा हो गया या शेखचिल्ली के सपने जैसा हो गया। अपने पूर्वजों ने जो जमीन-जायदाद बना के रखी है, उसको घर चलाने के लिए बेचने जैसा हो गया। पर जमीन-जायदाद बेच कर कब तक जियेंगे, यह नहीं सोचा। इसका भविष्य मे क्या परिणाम होगा, यह भी नहीं सोचा और नहीं किसी को इसका परिणाम मालूम है, नाही मालूम हो सकता है। तो बने बनाये सार्वजनिक उद्योगों को क्यू बेचना चाहिए, यह शोध का विषय हो सकता है।
सार्वजनिक और निजी उद्योगों मे क्या फर्क है?
- निजी उद्योगों का एक ही लक्ष्य होता है- मुनाफा कमाना। उन्हे किसी के परेशानी से कुछ नहीं लेना देना होता है। वही सार्वजनिक उद्योग मुनाफा कमाते तो है पर उनकी सामाजिक जिम्मेदारी होती है, मुनाफा नहीं मिला तो चलेगा पर समाज को साथ मे लेके चलना है।
- निजी उद्योगों मे परदर्शकता की कमी होती है, वह सरकार को और अपने भागीदारों को अंधेरे मे रखते है। निजी स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते है।
- निजी उद्योग मुनाफा बढ़ाने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लेते है, कायदा कानून तोड़ते है। जैसे गुरुकान्त देसाई ने गुरु फिल्म मे कानून की धज्जिया उड़ाई थी ठीक वैसेही।
- निजी उद्योग होने से बेरोजगारी बढ़ेगी, कम पगार होंगी, आप को कभी भी नौकरी से निकाल दिया जायेगा, कोई सुनवाई नहीं होंगी। आप एक ग़ुलाम की तरहा अपना जीवन काटोगे।
- निजी उद्योगों से महंगाई बढ़ेगी, क्युकी सभी निजी उद्योग एकजुट हो कर वस्तुओ की किमते बढ़ा देंगे ओर आप कुछ नहीं कर पाएंगे।
- निजी उद्योगों से उद्योगों पर किसी विशिष्ठ घराने या व्यक्ति की एकधिकारशाही होगी। जिसे बाद मे तोड़ना काफी मुश्किल हो सकता है।
- अस्पताल निजी होने से आप को सस्ते मे इलाज नहीं होगा और आप महेंगी दवाई नहीं खरीद पाएंगे तो आप बिना इलाज के ही मार जाएंगे, ऐसी स्थिति आ सकती है।
- निजी स्कूल मे आप बच्चों को नहीं पढ़ा पाओगे और सरकारी स्कूल नहीं रहेंगे तो आप का बच्चा पढ़ेगा कैसे, वो तप अनपढ़ रहेगा।
- सार्वजनिक उद्योग, निजी हाथों मे गये तो सरकार के पास भी पैसा नहीं होगा तो सरकार लोगों के भलाई के काम भी नहीं कर पाएगी और खुद ही अदमरी हो जाएगी और हो सकता है आने वाले समय मे सरकार भी न रहे, सरकार की जगह एक राजा हो जो गरीबों का खून चूसता हो, तब आप क्या करेंगे?
- निजी उद्योगों की वजह से पर्यावरण का काफी नुकसान हो सकता है, क्युकी उनको मुनाफे के सिवा ओर किसी चीज का लेना देना नहीं होगा। वो लोग तो पर्यावरण का सत्यानाश कर देंगे।
- निजी उद्योग आपके शोषण पे जोर देंगे न की आप की भलाई पे ।
उपरोक्त बाते सभी समाज, धर्म के व्यक्ति और भक्त के लिए लागू है, इसलिए भेदभाव, नफरत को छोड़के इन बातों पर विचार करे और ये बाते ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर करे और देश को बचाने मे सहयोग करे।