भारत देश ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिये, राफेल का सौदा फ़्रांस से किया था। डसाल्ट राफेल(Dassault Rafal) का सौदा यूपीए(UPA) सरकार से शुरू होकर एनडिए(NDA) सरकार मे खत्म हुआ। इसमे यूपीए सरकार मे 126 एयरक्राफ्ट का ऑर्डर दिया गया था, जिसे बादमे बदलकर एनडिए सरकार ने 36 एयरक्राफ्ट का ऑर्डर कर दिया ।
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर ।
इंडियन एयर फोर्स (IAF) को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए पुराने फाइटर जेट को बदलकर नये फाइटर जेट चाहिए थे। इसके लिए अलग देशों से टेन्डर मंगाये गये। 31 जनवरी 2012 को भारत के डिफेन्स मिनिस्ट्री ने यह जाहीर किया की 126 एयरक्राफ्ट का ऑर्डर डसाल्ट राफेल ने जीत लिया है क्युकी इसकी किमत बाकी के तुलना मे कम थी । इस टेन्डर मे पाच कंपनीयो ने हिस्सा लिया था।
डसाल्ट राफेल(Dassault Rafal) का रेट कम होने की वजह से 18 राफेल “फ्लाइ-अवे” स्थिति मे खरीदने का तय हुआ और बाकी के बचे हुये एयरक्राफ्ट को भारत मे हिंदुस्तान ऐरीनौटिक्स लिमिटेड(HAL) के साथ मिलकर टेक्नॉलाजी ट्रांसफर तत्व पर भारत मे ही बनाना था, जिसकी वजह से भारत मे रोजगार पैदा होता।
2012 की यूपीए सरकार की डील क्यू रुकी?
राफेल की कीमत कम होने की वजह से इसे चुना गया था। इस कीमत मे उसे खरदनेकी , 40 साल की ऑपरेटिंग कीमत और ट्रांसफर ऑफ टेक्नॉलजी की कीमत थी। जब भारत की बात डसाल्ट कंपनी से शुरू थी तब भारत ने HAL द्वारा भारत मे बनाये जाने वाले एयरक्राफ्ट के लिये कंपनी से वॉरन्टी मांगी, यही पर इस डील के समस्या शुरू हो गई। भारत बस यही चाहता था की जो एयरक्राफ्ट भारत मे बने वह अच्छी क्वालिटी के हो, इसके लिये डसाल्ट कंपनी से वॉरन्टी मांगी पर कंपनी ने वॉरन्टी देने से मना कर दिया । यही मुख्य समस्या थी जो 2012 मे इसकी डील नहीं हो पायी।
हिंदुस्तान एरनॉटिक्स को डील से हटा दिया ।
2014 मे काँग्रेस पार्टी चुनाव बुरी तरहा से हार गयी। नैशनल डेमक्रैटिक अलाइअन्स की बीजेपी की सरकार बनी। इस समय मोदी सरकार ने डसाल्ट कंपनी के साथ 36 फाइटर जेट “फ्लाइ-अवे” स्थिति मे खरीदने का अग्रीमेंट कर लिया।
“फ्लाइ-अवे” याने जो एयरक्राफ्ट उड़ने के लिए तैयार हो या जो फ़्रांस से उड़कर भारत आये हो, जिनको यहा पर बनाना न पड़े।
2012 के भारत और डसाल्ट कंपनी के बातचीत मे HAL द्वारा भारत मे एयरक्राफ्ट बनाने का प्रस्ताव था, जो की बीजेपी सरकार के प्रस्ताव मे नहीं था। जब भारत मे एयरक्राफ्ट बनेंगे ही नहीं तो HAL का क्या काम रहेगा। इस तरहा से हिंदुस्तान एरनॉटिक्स को डील से हटाया गया।
हिंदुस्तान एरनॉटिक्स हटने से हुआ बड़ा नुकसान।
अगर राफेल की डील टेक्नॉलजी ट्रांसफर पे होती, तो भारत सरकार की अपनी कंपनी को हिंदुस्तान एरनॉटिक्स को काफी सारा काम मिला होता। इस प्रोजेक्ट से देश के युवाओ को नौकरी मिलती, रोजगार बढ़ता और हिंदुस्तान एरनॉटिक्स ओर सशक्त बन जाती। इसके साथ कई सारे वेंडर्स को काम मिलता था। एक तरहा से देश मे अच्छा वातावरण बनता। नयी टेक्नॉलजी भारत को मिलती जिसे यहा के वैज्ञानिक समझ पाते और अच्छा बेहतर बना पाते। पर सच्चाई यह है की हिंदुस्तान एरनॉटिक्स को इस डील से हटाया गया।
डील का भागीदार बना अनिल अंबानी ग्रुप।
अप्रैल 2015 जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन्होंने फ़्रांस की यात्रा की थी तब उस यात्रा मे उनके साथ एडिएजी ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी भी साथ थे। भारत के प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की थी के भारत 36 बने हुये एयरक्राफ्ट का अधिग्रहण करेगा।
अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेन्स 28 मार्च 2015 को बनी, जो की 36 एयरक्राफ्ट लेने की घोषणा से 12 दिन पहले बनी थी। रिपोर्ट के अनुसार भारत को 58 हजार करोड़ रुपये देने है 36 राफेल को लेने के लिये, जो की एक एयरक्राफ्ट की कीमत 1600 करोड़ रुपये है।
“ भारत की नयी डिफेन्स पार्ट्नर्शिप पॉलिसी के तहत विदेशी एयरक्राफ्ट बनाने वाली कंपनी कोई भी इंडियन कंपनी से भागीदारी कर सकती है”। इस पॉलिसी के तहत ही अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेन्स को यह कान्ट्रैक्ट मिला, जिसको इस काम का कोई अनुभव नहीं था। ओर जो अनुभवी कंपनी थी हिंदुस्तान एरनॉटिक्स उसको हटाया गया।
पढे : सरकार का पूर्वजों की जमीन-जायदाद बेचना कितना उचित ?
रिलायंस को नागपूर मे दी गयी जमीन।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राफेल डील की घोषणा 10 अप्रैल 2015 मे की। जुलाई 2015 को रिलायंस ऐरोस्ट्रक्चर ने महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेंट कौंसिल की तरफ मिहान सेज, नागपूर मे जमीन के लिए आवेदन किया। उनको अगस्त 2015 मे 289 ऐकर जमीन 63 करोड़ रुपये मे आवंटित कर दी। बाद मे कंपनी ने 104 ऐकर ही ली ।
रिलायंस ऐरोस्ट्रक्चर यह कंपनी 24 अप्रैल 2015 मे बनी, जो की राफेल की मोदी ने घोषणा करने के बाद बनी है। इस कंपनी को फाइटर एयरक्राफ्ट बनाने का लाइसेंस डिफेन्स मिनिस्ट्री की तरफ से 2016 मे मिला है।
बीजेपी सरकार अपने भ्रष्टाचार कम करने के अजेन्डा के साथ आयी थी। तो किसी सरकारी कंपनी को हटाकर प्राइवेट कंपनी को शामिल करना यह भ्रष्टाचार नहीं है ?
126 एयरक्राफ्ट की जगह 36 एयरक्राफ्ट लाना यह भ्रष्टाचार नहीं है ?
700 करोड़ का एयरक्राफ्ट 1600 करोड़ मे लाना यह भ्रष्टाचार नहीं है ?
अपने दोस्तों के लिए कानून बदलना यह भ्रष्टाचार नहीं है ?
अब सवाल यह उठता है की इस डील मे डसाल्ट ऐवीऐशन के साथ बातचीत कौन कर राहा था, भारत सरकार या अनिल अंबानी ग्रुप क्युकी अगर भारत सरकार बात कर रही थी तो यह डील अनिल अंबानी ग्रुप को क्यू मिली जब की भारत की अपनी हिंदुस्तान एरनॉटिक्स को मिलनी चाहिए थी? क्या यह चॉइस भारत सरकार की थी या फ़्रांस सरकार की ?
इस डील के ऑफ्सेट क्लॉज़ के तहत फ़्रांस की कंपनी को राफेल डील की कीमत का 50 फीसदी भारत मे भारतीय प्राइवेट या गवर्नमेन्ट कंपनी के साथ भारत मे इन्वेस्ट करना है।
पढे : निजीकरण(Privatisation) की शुरुवात किसने की और किस युग को निजीकरण का स्वर्ण युग कहा जाता है?