स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धन ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद(ICMR) की रिपोर्ट के हवाले से कहा है की “भारत की जनसंख्या अभी हर्ड इम्यूनिटी से बहुत दूर है और कोरोना से बचाव मे सावधानी जरूरी है”। हर्ड इम्यूनिटी ही एक मात्र इलाज है कोरोना वायरस से निपटने का। क्या होती है हर्ड इम्यूनिटी?
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर
हर्ड इम्यूनिटी एक अप्रत्यक्ष संरक्षण का रूप है जो हमे बीमारी के इन्फेक्शन होने से बचाता है, जब जनसंख्या के पर्याप्त प्रतिशत लोग इन्फेक्शन से इम्यून हो जाते है। इम्यून हुवा व्यक्ति बीमारी के संचरण को रोकता है, बीमारी के फैलाव की चैन को तोड देता है, जो बीमारी के फैलने को कम करता है या रोक देता है।
कैसे विकसित होती है हर्ड इम्यूनिटी?
भारत मे जैसे-जैसे कोरोना संक्रमण बढ़ राहा है, तो हर्ड इम्यूनिटी को लेकर चर्चा जोर पकड रही है। हर्ड इम्यूनिटी दो तरहा से विकसित होती है। पहले इसमे नैसर्गिक तरीके से और दूसरी वैक्सीन से।
नैसर्गिक तरीके से व्यक्ति की रोगप्रतिकारक शक्ति वायरस से मुकाबला करने के लिए सक्षम एंटीबॉडीज तैयार कर लेती है तो दूसरे तरीके मे वैक्सीन को शरीर मे छोड़कर विकसित की जाती है। हमारे शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति ही हमे बीमारी से बचाती है और ठीक कर देती है। वैक्सीन के मुकाबले हमारी खुद की इम्यूनिटी बेहतर होती है। जब वैक्सीन नहीं थी तब खुद की रोगप्रतिकारक शक्ति ही लोगों को बचती थी।
वैज्ञानिक संकल्पना।
हर्ड इम्यूनिटी की वैज्ञानिक संकल्पना अनुसार अगर कोई बीमारी बड़े समूह मे फैल जाती है तो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी से लड़ने मे संक्रमित लोगों की मदद करती है। जो लोग बीमारी से लढकर पूर्णरूपसे ठीक हो जाते है, वह उस बीमारी से इम्यून हो जाते है याने उन व्यक्ति मे प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते है। जैसे जैसे लोग इम्यून हो जाते है , वैसे-वैसे बीमारी के फैलने का खतरा कम हो जाता है।
एक्सपर्ट के अनुसार कोरोना वायरस के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी तभी विकसित हो सकती है, जब 60 फीसदी लोग कोरोना के संक्रमण से प्रभावित हो चुके हो और वायरस से लढकर इम्यून हो गये हो।
लॉकडाउन कोरोना का इलाज नहीं है।
लॉकडाउन के वजह से सिर्फ लोग कोरोना के संक्रमण से बच रहे है। लॉकडाउन कोरोना का इलाज नहीं है। कुछ समय के लिए वायरस को अपने से दूर रख रहे है।
लेकिन नैसर्गिक हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने के लिए भारत के 60 फीसदी लोगों को कोरोना से संक्रमित होना पड़ेगा, तभी हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो सकती है। इसमे तो कई लोगों को पता भी नहीं चलेगा की वह कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके है क्युकी काफी लोगों पर कुछ भी कोरोना के लक्षण नहीं दिखेंगे और वह इम्यून हो जाएंगे।
लॉकडाउन करके घरमे बैठने से हर्ड इम्यूनिटी विकसित नहीं होगी, उसके लिए बहार निकालना पड़ेगा। नैसर्गिक हर्ड इम्यूनिटी विकसित होना वैक्सीन लेने से बेहतर इलाज है।
कोरोना महामारी नहीं है।
कोरोना अगर महामारी होती तो देश के कई सारे लोग कोरोना संक्रमित होके मर गये होते, पर ऐसा नहीं हुआ। लॉकडाउन के समय भी कई सब्जीवाले सब्जी मंडी और गलियों मे घूम रहे थे पर उनमे से बोहोत सारे लोग अभीभी पूरी तरहा से स्वस्थ है। उसी तरहा कई किराना दुकानदार लॉकडाउन से लेकर अभी तक पूर्ण स्वस्थ तरीके से दुकानदारी कर रहे है। सब्जीवालों और दुकानदरों की औसतन आयु 45 से 65 साल की है। यह सब्जीवाले और दुकानदार स्वस्थ है इसका मतलब यही हुवा की कोरोना कोई महामारी नहीं है।
आजकी तारीख मे कोरोना से रिकवर होने वालों की संख्या 87 फीसदी है, इससे तो यही पता चलता है की लोग कोरोना से संक्रमित होके रिकवर हो रहे है और जो मौते हो रही है वह कोरोना के साथ कोई अन्य बीमारी की वजह से हो रही है या गलत ट्रीटमेंत की वजह से हो रही है।
सरकार अगर कोरोना टेस्ट करना बंद कर दे और मीडिया आँकड़े बताना बंद कर दे तो वैसे भी कोरोना खत्म हो जायेगा। क्युकी अगर कोई कोरोना से संक्रमित होके उसके शरीर मे एंटीबॉडी बन जाती है तो वह इस बीमारी से वैसे भी इम्यून हो जाता है। उसका कोरोना टेस्ट करके वह व्यक्ति पाज़िटिव है या नेगटिव देखने मे कुछ रखा नहीं है। नैसर्गिक हर्ड इम्यूनिटी विकसित होने के लिए लोगों को कोरोना के प्रभाव मे आनाही पड़ेगा।
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