हिन्दू धर्म का अध्ययन करते वक्त एक बात सामने आती है की यह धर्म दुश्मनी और आसमानता के आधार पर ही बढ़ा हुआ है। चाहे रामायण हो , महाभारत या ब्राह्मण ग्रंथ, इनमे दुश्मनी और आसमानता ही दिखाई देगी।
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर
धर्म एक ऐसी चीज है जो निश्चित नहीं है, वह एक प्रक्रिया है जो वक्त से साथ बनती और बदलती रहती है। इसलिये धर्मों मे काही सारे ग्रंथों की निर्मिती हुई है। धर्म अलग-अलग अवस्थाओ से गया है। धर्म की अभी की मान्यता पिछले मान्यताओ के समान ही रहेगी ऐसा जरूरी नहीं है। पर इस प्रक्रिया की हर अवस्थाओ को हमने धर्म ही कहा है।
पहेल लोगों की समझ कम थी, विज्ञान उतना उन्नत नहीं हुआ था। तब किसी भी अनजान घटना को धर्म के साथ जोड़ा गया, जैसे बाढ़ आ गयी, बिजली गिर गयी, बारिश नहीं हुई या ज्यादा हुई तो लोग समझ नहीं पाते थे की ऐसा क्यू हो रहा है। इसलिये किसी भी अनजानी घटनाको धर्म और विशिष्ठ भगवान के साथ जोड़ा गया।
धर्म मे दुश्मनी।
रामायण की बात करे तो रावण के किरदार के सिवा रामायण पूरा ही नहीं हो सकता। रावण को एक दुश्मन के तौर पर ही दिखाया गया है। वो भी छोटा मोठा दुश्मन नहीं बड़े प्रदेश का राजा था रावण। महाभारत की बात करे तो कौरव और पांडव एक दूसरे के दुश्मन थे। जमीन- जायदाद के लिए लढाई हुई थी। यह महाभारत की कथा भी दुश्मनी के सिवा पूरी नहीं हो सकती है। अपने ही लोगों से लड़ना हमने महाभारत से सीखा। इन ग्रंथों की बुनयाद ही दुश्मनी है।
धर्म मे असमानता ।
वेदों के बाद के ग्रंथों को “ब्राह्मण ग्रंथ” कहा जाता है। यह ग्रंथ पूर्णतः असमानता के तत्वों से भरा हुआ है। इसके मुख्य चार सिद्धांत है।
पहला सिद्धांत – वेद यह सिर्फ पवित्र न हो के यह अपौरुषेय है। इसके किसी भी शब्द पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता। इस सिद्धांत ने तो वेद पर का डिबेट ही खतम कर दिया। उसे जैसा है, वैसा मानने के सिवा ओर कोई रास्ता नहीं है।
दूसरा सिद्धांत – वैदिक यज्ञ, धार्मिक विधि और समारोह करके ब्राह्मणों को दक्षिणा देने के बाद ही आत्मा को मुक्ति मिल सकती है। इसमे ब्राह्मणों का ही वर्चस्व दिखता है ।
तीसरा सिद्धांत – यह सिद्धांत व्यवसाय को लेकर है। अध्ययन, अध्यापन और धार्मिक विधि करना ब्राम्हनों का काम है। क्षत्रियों का काम लढाई करना। व्यवसाय करना वैश्यों का काम और इन तीनों वर्गों की सेवा करना शूद्रों का काम। हिन्दू धर्म ने पूरे समाज को हिस्सों मे बाँट दिया।
चौथा सिद्धांत – यह सिद्धांत शिक्षा से संबंधित है। इस नियम के अनुसार शिक्षा लेने का अधिकार सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को है, शूद्र को इस अधिकार से वंचित रखा गया है। इस नियम के तहत सिर्फ शूद्र ही नहीं, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की महिलाओ को भी शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया।
आदर्श समाज की रचना मे असमानता एवं दुश्मनी।
हिन्दू धर्म मे आदर्श समाज की कल्पना है की आदर्श समाज कैसा होना चाहिए।
आदर्श समाज का पहला नियम – समाज चार वर्णों मे विभाजित होना चाहिए जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ।
दूसरा नियम – वर्णों मे सामाजिक समता नहीं हो सकती।
तीसरा नियम – सबके ऊपर ब्राह्मण होने चाहिए, उनके नीचे क्षत्रिय, उसके नीचे वैश्य और सबसे नीचे शूद्र।
चौथा नियम – हक और अधिकार मे समानता नहीं हो सकती। ब्राह्मणों को सब अधिकार है तो शूद्रों को कुछ भी अधिकार नहीं।