भारत ने आजादी के बाद देश के हित के लिए मिश्र अर्थव्यवस्था को अपनाया, ताकि सरकारी और प्राइवेट सेक्टर साथ साथ चल सके। पब्लिक सेक्टर का देश की उन्नति और लोगों की गरीबी मिटाने मे काफी बडा योगदान रहा है। मिश्र अर्थव्यवस्था मे सरकार का काम होता है की दोनों सेक्टर को साथ मे लेके चलने का, पर अगर सरकार एक ही प्राइवेट सेक्टर के भले के लिए काम करेगी तो क्या होगा?
न्यूज मेडियटर्स – आकाश वनकर
पूंजीवाद और समाजवाद से मिलकर भारत देश की अर्थव्यवस्था बनी है। मिश्र अर्थव्यवस्था के चलते देश ने काफी तरक्की की और देश के लोगों को गरीबी से ऊपर लाने के लिए मदद की। इस अर्थव्यवस्था मे सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र का अस्तित्व होता है व दोनों साथ साथ चलते है।
सरकारी क्षेत्र का निजीकरण।
सरकारी क्षेत्र का निजीकरण यह सबसे पहला कदम है, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के तरफ बढ़ने का। इसकी शुरुवात 1991 के इकनॉमिक रिफॉर्म के साथ हुई, जब डॉ मनमोहन सिंग फाइनैन्स मिनिस्टर थे।
अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल मे देश के सबसे ज्यादा उपक्रमों को निजी हाथों मे दे दिया गया। जिसकी वजह से आज वह निजी कंपनीया काफी बढ़ी हो गई है।
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल मे भी सरकारी उपक्रम को बेचा जा रहा है। जिसके चलते आने वाले समय मे देश घोर पूंजीवाद के चपेट मे आ जायेगा।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का एक ही मकसद होता है मुनाफा कमाना। इस अर्थव्यवस्था मे देश का उत्पादन निजी मालकीयत का होता है। और इसका नियंत्रण मार्केट के हिसाब से होता है। इसमे सरकार का कुछ भी रोल नहीं रहता है।
आर्थिक असमानता बढेगी।
आर्थिक स्थिती से देखा जाये तो देश की बडी आबादी अभी भी गरीबी मे जी रही है। वही दूसरी तरफ देश के कुछ लोग है जिन्होंने गरीबी क्या होती है देखी भी नहीं है।
मोदी सरकार मे जो देश के लिए पॉलिसी बन रही है वह बडी आबादी का हित ध्यान मे न रखते हुए, देश के कुछ चंद लोगों का हित ध्यान मे रखते हुए बन रही है।
उसका हालही का उदाहरण है, किसान बिल। इस किसान बिल मे किसानों के हित से ज्यादा पूँजीपतियों का हित समाया हुआ है। किसान अपनी ही खेती पर बंधुआ मजदूर बनने के लिए मजबूर किये जा रहे है।
देश की दौलत कुछ लोगों के हाथ मे होगी।
मिश्र अर्थव्यवस्था मे जहा देश की दौलत का समानता के तौर पे वितरण होता है वही पूंजीवादी अर्थव्यवस्था मे देश की दौलत देश के चंद लोगों के हाथों मे होगी। 10 से 20 फीसदी लोग अमीर होंगे तो 80 से 90 फीसदी सामान्य व गरीब होंगे।
इसी के चलते पिछले कुछ सालों से देश के कुछ उद्योगपतियों की दौलत तीन गुना से पाँच गुना बढ़ी है। अमीर ओर अमीर होता जा रहा है तो गरीब ओर गरीब होता जा रहा है। देश की दौलत चंद लोगों के हाथों मे जमा होती जा रही है।
सरकार की नीतिया पूँजीपतियों के हिसाब से।
पूंजीपति और उद्योगपति अपने पैसे और पावर का उपयोग करके सरकार की नीतीय अपने हिसाब से बनाते है। ताकि उनका फायदा बढ जाये।
पर यह पूँजीपतियों के हित मे बनाई गई नीतिया ज्यादातर आम नागरिक के हित के नहीं होती है। इन नीतियों से आम नागरिक का केवल और केवल अहित और शोषण ही होता है। क्युकी पूंजीपति अर्थव्यवस्था मे लोगों के भलाई के लिए नहीं सोचा जाता है।
बेरोजगारी बढेगी।
जब दौलत समान मात्रा मे या लोगों के हित बटने की बजाय किसी खास लोगों के पास जमा हो जाएंगी तो इसका असर रोजगार पर भी पड़ेगा।
आजादी से लेकर अब तक भारत की कोई भी सरकार गरीबी और बेरोजगारी मिटाने मे असफल रही है।
भारत मे पूंजीपति व्यवस्था के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, अच्छा खाना और शुद्ध पानी आम नागरिकों के पोहोच के बाहार चली जायेगी। जिसकी वजह से मौत एवं गुनहगरी का प्रमाण बढ़ेगा।
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