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भारत का लोकतंत्र(लोकशाही) खतरे मे, कैसे न्याय मिलेगा हाथरस मे?

लोकतंत्र(Democracy) भारत मे न्यायपालिका(Judiciary) तथा संसद(Legislative) जो लोगों के न्याय के लिए बनाई गई है जो चार स्तंभों मे से है। जहा से लोगों को न्याय मिलने की उम्मीद बनी रह थी है। अगर वहा पर ही न्याय मिलना बंद हो जाये तो क्या होगा? जुल्म इतने बारबार हो रहे की कही हमे जुल्म सहने की आदत न पड जाये।

न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर

पिछले कुछ सालों से देश की जिस तरहा से हालत होते जा रहे है, आरोपी को बचाने के लिए जिस तरहा से राजनीति हो रही है, जो पीडित है उसे ही जेल मे डाल दिया जा रहा है। तो एक सवाल पैदा हो ही ज्याता है की क्या देश मे न्यायव्यवस्था बची है?

संसद और न्यायपालिका(Legislative and Judiciary)।

संसद या विधान सभा यह वह है जिसे कानून और जन नीतिया बनाने, हटाने और बदलने का अधिकार है। मतदान की प्रक्रिया के द्वारा संसद के सदस्यों को जनता द्वारा चुना जाता है ताकि लोगों की बात सदन मे रखी जा सके।

न्यायपालिका लोकतंत्र का वह अंग है जो कानून के अनुसार नहीं चलने वाले को दंडित करती है। विवादों को सुलझाने का काम करती है। न्यायपालिका स्वयं नियम नहीं बना सकती पर सभी को समान न्याय सुनिश्चित करना न्यायपालिका का मुख्य काम है।

अगर संसद और न्यायपालिका अपना काम सही ढंग से करना बंद कर दे, या किसी एक विशिष्ठ व्यक्ति के लिए काम करे या किसी पार्टी के लिए काम करे तो क्या निष्पक्ष न्याय मिल पायेगा?

जैसे सदन मे बहुमत के साथ एक पार्टी कोई कानून बना रही है या कोई गंभीर मुद्दे पर बात हो रही है तो जिस पार्टी के पास बहुमत है वह चाहे अच्छा हो या बुरा वह कानून पास करवा सकती है। आप उसे नहीं रोक सकते, चाहे कितना भी गलत कानून क्यू न हो।

उस कानून के खिलाफ आप न्यायपालिका के पास जा सकते है। लेकिन न्यायपालिका के न्यायाधीश अगर उस पार्टी को ही मानने वाले बैठे है तो आप क्या करेंगे? आपकी कही सुनवाई नहीं होगी। आप यहा पर न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते चाहे आप की बात कितनी भी सच्ची हो।

कार्यपालिका और मीडिया(Executive and Press/Newspaper))।

कार्यपालिका का काम होता है जो नियम बने है उसे लागू करवाना। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा इसका प्रयोग करेगा। अगर राष्ट्रपति और सरकारी अधिकारी बहुमत की पार्टी को मानने वाले हो तो चाहे कानून अच्छा हो या बुरा उसे तो लागू करवाके ही रहेंगे। अपनी चुप्पी से हर कानून को सहमती देंगे।

मीडिया का काम होता है लोगों तक सच पहुचाना। लेकिन मीडिया हाउस अगर किसी राजनैतिक पार्टी के लिए काम कर राहा हो तो जो राजनैतिक पार्टी दिखाना चाहेगी वही दिखाएगी, चाहे सच हो या झूठ। मीडिया राजनैतिक पार्टी के लिए काम करके किसी भी सच को झूठ बना कर दिखा सकती है क्युकी क्या बताना है वह तो उसी के हात मे रहेगा और आप उसी को सच मान कर देखते रहेंगे।

दो जगह पर एक ही खबर के दो पहलू दिखा कर आपको भ्रमित भी किया जाता है, ताकि आप उस घटना के खिलाफ आवाज न उठा सके।

हाथरस केस।

एक ही खबर को अलग-अलग चैनल पर अलग-अलग ढंग से दिखा कर भ्रमित किया जा राहा है। ताकि आप तक सच न पहुच सके। हर वक्त नई कहानी लेके सरकार और मीडिया आ रही है, ताकि लोगों को भ्रमित किया जा सके। क्या सरकार और मीडिया का काम लोगों को भ्रमित करना है?

प्रशासन और पुलिस जैसा बताया जा राहा है वह वैसा कर रही है। जो की कार्यपलिका का काम है, उसे खूब अच्छी तरह निभा रही है। अगर कोई सवाल आ गया तो एक दूसरे पे ढकेल रही है। वह सरकार से सवाल नहीं पूछ रही है की ऐसा क्यू कर रहे हो? क्युकी इनका काम है जो नियम बताए गये है उसे सिर्फ अमल मे लाना।

न्यायपालिका का काम है निष्पक्ष न्याय देना लेकिन यहा पर भी सरकार को मानने वाले लोग अगर बैठे है तो क्या इसमे निष्पक्ष न्याय होगा। बाकी के केस मे जिस तरहा पीडित को ही आरोपी बना के जेल मे डाल दिया वैसा यहा भी हो सकता है।

संसद ने अभी तक बलात्कार के लिए कोई भी ठोस कानून नहीं बनाया जब की वह बहुमत से बना सकते है। जानबुझकर इसके तरफ नजरअंदाज कर रहे है ताकि बलात्कारी बच सके।

देश का विकास के नाम पर सरकार गंभीर बातों को नजरअंदाज कर रही है। जो भी इसके खिलाफ बोलते है उसको देश के विकास की बात करके देशद्रोही ठहरा रही है। कही ऐसा न हो लोग विकास के लिए अपना आत्मसन्मान न खो दे। जुल्म इतना हो जाए की लोगों को जुल्म सहने की आदत सी हो जाए और जुल्म मे भी विकास दिखने लगे। पर जुल्म करने वाले से जुल्म सहने वाला ज्यादा गुनहगार होता है, यह भी जान लीजिये।

अगर किसी राजनैतिक पार्टी का लोकतंत्र के चारों स्तंभों पर कब्जा हो जाए तो क्या उस सरकार से या न्यायपालिका से हम निष्पक्ष न्याय की उम्मीद कर सकते है? क्या भारत देश मे कभी न्याय मील पायेगा? या लोगों को वही न्याय मिलेगा जो सरकार देना चाहेगी। कही देश का लोकतंत्र तो खतरे मे नहीं है?

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लोकशाही और सोशल मीडिया

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