देश की ईकानमी आज भी ऐग्रिकल्चर सेक्टर पे निर्भर है। समय के साथ जो भी फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज़ भारत देश मे निर्माण हुई, उन सब कंपनीयो कच्चा माल देने का काम भारतीय ऐग्रिकल्चर सेक्टर ने किया है। अगर भारत के किसान खेती करना बंद कर दे तो वैसे भी देश की अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से ध्वस्त हो जायेगी। पर किसानों के साथ कंपनी को ही खेती करनी दि जाए तो क्या होगा?
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर
पिछले कुछ महीनों से या लॉकडाउन से देश मे जो लोग अमीर बने है, उनमे ज्यादातर लोग फार्मा कंपनी, टेक्नॉलजी, फूड एण्ड रीटेल इंडस्ट्रीज़ से जुड़े हुए है। सबसे ज्यादा कमाई इन क्षेत्रों के कुछ लोगों ने की है। इसका मतलब यही हुआ की जो पहले से तैयार है वही बाजी मार सकता है। जैसे डी-मार्ट ने तो कमाई कर ली पर वही बिग बाजार को बिकना पडा। ऐसे ही टेक्नॉलजी और फार्मा कंपनी का हुआ।
फूड और रीटेल इंडस्ट्री खेती पर निर्भर।
जीतने भी रीटेल शॉप है, उनमे ज्यादा तर चीजे खेती और खेती से जुड़ी इंडस्ट्रीज़ की होती है। जो घर मे राशन लगता है वह भी पूरा खेती से जुड़ा हुआ है। एक तरीके से देखा जाये तो देश मे सबसे ज्यादा डायरेक्ट और इनडायरेक्ट तरीके से कृषि मे ही नव निर्माण और रोजगार उत्पन्न हो रहा है।
इसलिए देश के रोजगार और अर्थव्यवस्था खेती और खेती से जुड़े उद्योगों पर काफी हद तक निर्भर है।
खेती और भारतीय अर्थव्यवस्था।
भारत की ट्रांसपोर्ट सिस्टम को चला ने के लिए ऐग्रिकल्चर का काफी महत्व है। ट्रांसपोर्ट सिस्टम अगर पहिये घूम रहे है तो वो ऐग्रिकल्चर की वजह से।
जो भी देश मे माल इधर से उधर जाता है वह ज्यादा तर कृषि और उससे जुड़े धंधों का ही होता है। अगर देश की कृषि व्यवस्था खतम हो गई तो उसका असर देश के बाकी बिजनस पे भी पड़ेगा।
ऐग्रिकल्चर सिस्टम का बढ़ाना एक तरीके से देश का बढ़ना और गरीबी मिटाने के लिए कारगर उपाय है। देश का सबसे बडा मार्केट रुरल मार्केट (Rural Market)ही है, जिसमे कम किमत और मध्यम किमत की वस्तुए ज्यादा तर खरीदी जाती है।
भारत के ऐग्रिकल्चर सिस्टम मे बदलाव करना मतलब पूरे देश की अर्थव्यवस्था मे बदलाव करना है।
कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग(Contract Farming) का नया कृषि बिल।
नये कृषि कानून के तहत कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग को कानूनी दर्जा दिया गया है। ताकि कोई भी कंपनी जाकर देश के किसी भी किसान से सीधा कृषि उपज(Agriculture Produce) या फसल लेने का कान्ट्रैक्ट कर सकती है और जो भी फसल उगेगी उसको अपने गोडाउन मे रख सकती है।
गोडाउन मे रखा हुआ माल अपने जरूरत के हिसाब से देश मे या विदेश मे बेच सकती है। इसके लिए सरकार की तरफ से कोई रोकटोक नहीं है।
एक ही तरह की फसल का दबाव।
कंपनी के साथ अगर किसान कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग का अग्रीमेंट करना चाहे तो कंपनी की तरफ से किसी एक तरह की फसल लेने के लिए दबाव बन सकता है।
कोई भी कंपनी अपना पैसा खेती मे लगायेगी तो अपना मुनाफा भी देखेगी। जिसभी फसल मे ज्यादा मुनाफा होगा वही फसल वह कंपनी लेना चाहेगी। किसान की दूसरी फसल उगाना भी चाहेगा तो नहीं उगा पायेगा। इससे दूसरे तरह की फसलों पर असर गिरेगा।
खाद्य फसल की कमी होगी।
मुनाफे के लिए कंपनी अपने हिसाब से फसल उगाएगी वह ज्यादातर उद्योगधंधों को लगने वाली होगी। ताकि उससे ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकेगा।
पर जो फसल आज तक अपने दो वक्त का खाना जुटाने के लिए उगाई जाती थी वह फसल इस सिस्टम मे नहीं उगेगी। इससे खाने पीने की चीजों की मार्केट मे कमी हो जायेगी।
जो किसान अपने ही घर की फसल से उगा अनाज या खाद्य फसल खाता था, उसको मंडी या दुकान से लेकर खाना पड़ेगा। उसके खुद के उपयोग के लिए अनाज या खाद्य फसल नहीं रहेगी। जो किसान स्वावलंबी था वह दूसरों पे निर्भर हो जायेगा।
देश मे खाद्य फसल की कमी हो जायेगी। लोग खाने की चीजे नहीं खरीद पायेंगे। खाद्य चीजों की मंडी मे कमी हो जायेगी।
महंगाई बढ जायेगी।
जैसे ही अनाज और खाद्य पदार्थों की मंडी मे कमी हो जायेगी वैसे ही उस वस्तुओ के दाम बढ जायेगे। किसान और मजदूर वर्ग शायद ही उसे खरीद पायेंगे। लोगों की खरीदने की क्षमता कम हो जायेगी।
मुनाफे के लिए कोई भी कंपनी अनाज या अन्य फसल अपने फायदे के लिए गोदामों मे भर कर रख देगी। ताकि उस फसल की मार्केट मे कमी निर्माण हो जाये। जब पूरी तरह से कमी निर्माण हो जायेगी तो वह अपने हिसाब से अपनी किमत पर लोगों को बेचेगी।
गरीबी और भुखमरी बढेगी।
इस नीति के तहत अगर खेती की जायेगी तो आनेवाले समय मे भारत मे भुखमरी और गरीबी जरूर बढेगी। तब शायद ही इसे हम रोक पायेंगे।
आजादी के बाद देश से गरीबी हटाने के लिए देश मे सबसे बडा योगदान किसी का रहा होगा तो वह है कृषि क्षेत्र। आज भी भारत देश की वही स्थिती है। अगर कृषि क्षेत्र सरकार की नीतियों से प्रभावित हो जाता है तो देश की पूरी अर्थव्यवस्था इससे प्रभावित हो जायेगी।
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