सबसे ज्यादा सार्वजनिक उद्योगों(PSU) का निजीकरण(Privatisation) बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी इनके कार्यकाल मे हुवा, इस युग को विनिवेश(Disinvestment) का स्वर्ण युग भी कहते है ।
न्यूज मेडियेटर्स । अटल बिहारी वाजपेयी जब नैशनल डेमक्रैटिक अलाइअन्स (NDA) की सरकार जो 1999 से 2004 तक बनी थी तब वह उस गठबंधन सरकार के प्राइम मिनिस्टर थे। सब से ज्यादा निजीकरण 1999 से 2004 मे हुवा, इसलिये इस समय को निजीकरण(privatisation) का स्वर्ण युग कहते है ।
निजीकरण की शूरवात पी.वी.नरसिम्हा राव जब प्राइम मिनिस्टर थे तब से हुयी। पी वी नरसिम्हा राव जब प्राइम मिनिस्टर थे, तब काफी छोटे पैमाने पर निजीकरण हुवा, पर जैसे ही बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी इनकी सरकार बनी सार्वजनिक उद्योगों की निजीकरण की प्रक्रिया को जमकर गति मिली। जैसे उनकी सरकार कंपनी बेचने के लिए ही बनायी गयी थी । इस बेचने की प्रक्रिया को “स्ट्रैटिजीक सेल “ नाम दे दिया गया। जो आज 2020 तक क्लीयर नहीं है की कौनसी कंपनी को “स्ट्रैटिजीक सेल” मे बेचा जायेगा ।
इस निजीकरण की प्रक्रिया मे उनके साथ थे उनके सहयोगी अरुण शौरी, जो इस निजीकरण की प्रक्रिया को कामयाब बनाने के लिए काफी मेहनत कर रहे थे ।
एनडीए सरकार मे पहली बार विनिवेश (Disinvestment) विभाग बना, जो बाद मे मिनिस्ट्री मे बदल दिया गया, जिसको अरुण शौरी साथ मे सेक्रेटरी प्रदीप बैजल देखते थे । अलग एक कैबिनेट कमिटी ऑफ डीसइनवेस्टमेंट बनायी गयी ।
कौन से सरकारी उद्योग प्राइवेट हुये ।
भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड, सीएमसी लिमिटेड , हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड , एचटीएल लिमिटेड , इंडियन पेट्रोकेमिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड , मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड , पारादीप फास्फैट लिमिटेड , विदेश संचार निगम लिमिटेड , मारुति उद्योग लिमिटेड , होटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के दो होटेल्स और इंडियन टुरिज़म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के 17 होटेल्स प्राइवेट कंपनीयो को बेच दिये गये। इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने आईबीपी का अधिग्रहण कर लिया ।
सरकारी कंपनी को निजी करने के लिए सरकार को काफी विरोध हुवा। यह विरोध उन्ही की सरकार मे से हुवा। स्वदेशी जागरण मंच निजीकरने के खिलाफ था और विनिवेश विभाग को बंद करने के लिए मांग कर रहा था। भारतीय मजदूर संघ और अनेकों संघटनाओ ने इसके खिलाप नारे लगाये पर सरकार ने एक नहीं सुनी और पूरे जोर शोर के साथ सरकारी उद्योगों को बेच दिया, उसका निजीकरण कर दिया। यूपीए(UPA) सरकार मे सरकारी उद्योगों को प्राइवेट करने के लिए उतना महत्व नहीं दिया, जितना एनडीए सरकार ने दिया।
आज जो निजीकरण की प्रक्रिया शुरू है उसकी शुरुवात अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल से ही शुरू हो गयी, अब तो बीजेपी की ही सरकार है तो हम एक भारतीय नागरिक होने के नाते इनसे क्या उम्मीद कर सकते है?
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