आजादी के बाद सरकारी उद्योग(PSU) को बढ़ावा दिया गया जो की कमाई का जरिया था, जिससे यहा के लोगो के लिए नौकरी का निर्माण कर सके ताकि भुखमरी और गरीबी को कम किया जा सके। जिन सरकारी कंपनीयो(PSU) ने देश का नाम ऊँचा किया, प्रगतिपथ पर लेके गया, उन सरकारी उद्योगों(PSU) का निजीकरण क्यू हो रहा है?
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर
1991 मे जब डॉ मनमोहन सिंग फाइनैन्स मिनिस्टर(Finance Minister) थे तब इकनॉमिक रिफॉर्म(Economic Reform) के तहत देश की पॉलिसी(Policy) मे बदलाव किये गए। इसे एलपीजी रिफॉर्म(LPG Reform) कहा गया। इस एलपीजी रिफॉर्म के तहत सरकारी उद्योगों को निजी कंपनीयो को बेचा जाने लगा।
एलपीजी रिफॉर्म पॉलिसी(LPG Reform Policy) क्यू लाई गयी?
1984 मे प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा की “ पब्लिक सेक्टर कई सारी जगह पर फैला हुआ है जिसे नहीं होना चाहिए था। हम पब्लिक सेक्टर इसलिए विकसित कर रहे है की जिससे नौकरीयो का निर्माण हो सके। पर हम प्राइवेट सेक्टर के लिए भी ईकानमी(Economy) खुली कर रहे है जिससे ईकानमी मुक्त तरीके से बढ़ सके।“ यही से शुरुवात होकर 1991 की लिब्रलाईजेशन, प्राइवेटाईजेसन और ग्लोबलाईजेशन कि पॉलिसी बनी।
एलपीजी पॉलिसी(LPG Policy) लाने के पीछे जो कारण थे उनमे इनवेस्टमेंट पे कम रिटर्न मिलना, नैशनल सैविंग मे कम होना, संसाधनों का उपयोग न होना, उपयोग से ज्यादा लोग नौकरी पे रहना और नौकरशाही की वजह से काम मे दिरंगई और दुर्लभ संसाधनों का अपव्यय होना।
इन कारणों की वजह से निजीकरण का कदम उठाया गया। क्या सिर्फ यह कारण काफी है सरकारी सेक्टर को निजी हाथों मे बेचने के लिए? अगर यह कारण थे तो सरकार अपनी पॉलिसी इसे ठीक करने के लिए बना सकती थी, ताकि जो खमिया है उसे कम कर सके और पब्लिक सेक्टर को मुनाफे मे ला सके।
जो एलपीजी रिफॉर्म पॉलिसी बनाने के लिए कारण दिए गये है वह देश के सुधार के लिए न होकर किसी खास लोगों के सुधार के लिए बनाई गयी थी, जो देश मे अपना साम्राज्य बनाना चाहते थे। उन लोगों को धंदा करने की छूट मिले इसलिए एलपीजी रिफॉर्म पॉलिसी लाई गयी और इसे लाने वाली काँग्रेस सरकार है। जिसका भरपूर उपयोग बीजेपी सरकार कर रही है।
प्लैनिंग कमिशन(Planning Commission) रिपोर्ट।
प्लैनिंग कमिशन के अध्ययन द्वारा रिपोर्ट मे कहा गया है की सरकारी कंपनीयो(PSU) का शुद्ध मुनाफा 1990-91 और 1998-99 के बीच नकारात्मक था, 1994 और 1995 का छोड़के। सभी राज्यों का एक साथ शुद्ध मुनाफा कुल राजस्व का नकारात्मक 1.2 प्रतिशत प्राप्त किया। कोई भी राज्य बेंच मार्क प्रॉफ़िट नहीं कमा पाया।
अध्ययन मे निष्कर्ष निकाला गया की: अगर राज्य सरकार यह पैसा सिर्फ बैंक मे रखता तो इससे ज्यादा वार्षिक रिटर्न मिलता।
इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक एनर्प्राइजेस(हैदराबाद) के अनुसार 1991-92 और 2004-05 के बीच मे सरकार के पास 1129 स्टेट-लेवल एनर्प्राइजेस(सरकारी कंपनी) थी। इनमे सरकार ने रुपये 90,983 करोड़ (1991-92) से रुपये 2,59,184 करोड़ (2004-05) इतने रुपयों का इनवेस्टमेंट किया। फिर भी सरकारी कंपनी को नुकसान रुपये 8754 करोड़ (1991-92) से रुपये 60517 करोड़ (2004-05) का हुआ।
क्या सरकारी कंपनीयो का नुकसान रुक सकता था।
रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने सरकरी कंपनी मे पैसा तो डाला पर सरकारी कंपनी मुनाफा नहीं कमा पाई। जितना भी पैसा डाला सब नुकसान मे ही चला गया।
पर डॉ मनमोहन सिंग जैसे अर्थशास्त्री होते हुये सरकारी कंपनीयो को क्यू नुकसान हुआ? जब डॉ मनमोहन सिंग इतना बड़ा एलपीजी रिफॉर्म लेके आ सकते है तो सरकारी कंपनी को प्रॉफ़िट मे बदलना उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं था। फिर क्यू सरकारी कंपनीयो का नुकसान होते देखा गया।
जैसे लालू प्रसाद यादव ने रेल्वे को घाटे मे से मुनाफे मे लाकर 20000 करोड़ का मुनाफा कमाके दिया, जब की वह अर्थशास्त्री नहीं है तो भी उन्होंने घाटे को मुनाफे मे बदल दिया। लेकिन डॉ मनमोहन सिंग ने मुनाफे की कंपनीयो को घाटे मे जाने से नहीं रोक पाए।
कॉंग्रेस और बीजेपी पैटर्न।
अभी तक ईकानमी का विश्लेषण किया तो एक पैटर्न बनाता है। कॉंग्रेस सरकारी कंपनीयो को कमजोर बनाती है, जिससे वह मुनाफा न कमा पाए और बीजेपी आती है ओर उसे बेच देती है। जब जब बीजेपी की सरकार आई है नीजीकरण को बढ़ावा मिला है, सीधे सीधे सरकारी कंपनी को निजी हाथों मे बेच दिया गया।
अगर यह दोनों सरकारे चाहते तो सरकारी उद्योगों को बचा सकते थे पर किसी ने बचाने की कोशिश नहीं की। करोड़ों रुपये सरकारी कंपनी मे डाल के सरकारी कंपनी को भविष्य नहीं दिलवा सके तो यह पार्टीया लोगों का क्या सुनहरा भविष्य बनाएगी?
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