सरकारी नौकरी मे सभी धर्म और पंथ के लोग है। अगर पूरी तरह निजीकरण हो जाता है तो इसका सिर्फ किसी एक समाज पर असर नहीं पड़ेगा तो पूरे देश पर पड़ेगा। आज जो लोग निजीकरण को बढावा दे रहे है, हो सकता है कल उनको रोना पड़ेगा। बहुजनों के साथ सवर्णों को भी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर
2020 मे कुछ लोग प्राइवेटाईजेशन के पक्ष मे बोल रहे है तो कुछ इसके विरुद्ध बोल रहे। जो लोग इसके पक्ष मे बोल रहे है वह कह रहे है की सरकारी कंपनीया घाटे मे चल रही है, सर्विस अच्छी नहीं मिलती, दुनिया मे नाम होगा, ओवर स्टाफिंग है, निर्णय क्षमता नहीं है, रेज़र्वैशन है, बगैर काम के पगार लेते है इसलिए इनको बेचना चाहिए।
पर क्या सिर्फ इन कारणों कि वजह से सरकारी उद्योगों को बेचना चाहिए? यह काम तो बगर बेचे भी सुधार पॉलिसी लाके किये जा सकते है। बगर बेचे सरकारी उद्योगों को मुनाफे मे लाया जा सकता है। सर्विस को सुधारा जा सकता है। अगर लोगों को नौकरीयो की जरूरत है तो थोड़े ज्यादा लोग नौकरी मे भर लिए तो क्या बीगेडेगा, वैसे भी आप के घर के सामने की या आसपास की सड़क पिछले 20सालों मे 10 बार तो बनी होगी, उसे बनाने के लिए जितना पैसा खर्चा किया गया, उससे तो काफी कम ही खर्चा वेतन मे जायेगा पर इससे उस व्यक्ति की ज़िंदगी अच्छी हो जाएगी।
वास्तविक स्थिति।
हजारों लोग इंटरनेट से कनेक्ट हुये है पर अभी भी हजारों लोगों को पीने के लिए शुद्ध पाणी नहीं है। देश मे कई सारे इंजीनियर है पर पूरे दुनिया मे से 25 फीसदी लोग भारत मे कुपोषित है। जहा लोगों को रोटी नसीब नहीं हो रही है वहा विश्वगुरु बनने के सपने देखे जा रहे है। जहा लोग खूब सारा पढे है तो वही काफी सारे अनपढ़ है। यहा लोग हररोज भूख से लढाई कर रहे है। जितना मिडल क्लास है उससे ज्यादा लोग गरीबी की रेखा के नीचे है
रेज़र्वैशन क्यू जरूरी है।
आज देश मे जिनको रेज़र्वैशन दिया जाता है, उनको कई साल पहले गुलामों का जीवन जीना पड़ता था।यह जीवन कोई खुशी से नहीं अपनाया था, समाज ने उन पर जबरदस्ती लादा था। इनके पास न रोटी, न कपड़ा और न मकान था। इनके जीने के भी हक छिन लिए गये थे। साथ मे मिलना तो दूर पास भी नहीं आने देते थे।
यह लोग जादा पड़े लिखे नहीं थे तो उनको नौकरी मे लाके समाज के लायक बनाने के लिए कुछ खास सुविधाये देनी पड़ी जिसे आरक्षण कहा गया ताकि यह लोग भी अच्छी खासी जिंदगी जी सके।
कुछ लोग कहते है आरक्षण बंद होना चाहिए। पर कभी सोचा है, इन लोगों को हजारों वर्षों से दबाया गया है, इनके हक छीने गये है। जिनको हजारों सालों से दबाया और गुलाम बनाया गया है क्या वह 60-70 सालों मे पूरी तरहा ठीक हो जाएंगे? या उनको वक्त लगेगा। क्या उनको उतना वक्त देना चाहिए? ताकि एक अच्छी ज़िंदगी शुरू कर सके। अभी तो लोग उस गुलामी से बहार निकल रहे है
100 फीसदी लोगों मे से कुछ लोग जो की 5-10 फीसदी हो सकते है जो ऊपर आ गये हो पर अभी भी 90-95 फीसदी लोग ऊपर आने के बाकी है। इसलिए उनको आरक्षण जरूरी है ताकि वह अच्छी शिक्षा और जीवन जी सके।
सवर्ण लोगों को सभी सुविधाये पहले से ही उपलब्ध है और उसका उपयोग कर रहे है। फिलहाल सरकार ने सावर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया है। पर आपने कभी सोचा इनके पास सब साधन होते हुये यह लोग आर्थिक रूप से कमजोर क्यू हो गये? की उनको आरक्षण मांगना पड़ा।
श्रुष्टि का तो नियम ही है जो लिया है उसे तो वापस करना ही पड़ेगा,इसे आप कैसे तोड सकते हो।
निजीकरण से क्या हो सकता है?
सरकार जिम्मेदारी से मुकर जाएगी।
जो कमजोर वर्ग है, जिसको आज भी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड राहा है। अगर सरकार इनकी जिम्मेदारी से मुकर जाती है तो कहा जाएंगे ये लोग। क्या प्राइवेट कंपनी इनको पालने वाली है।
असमानता बढेगी।
देश मे असमानता काफी पहले से है पर अभी तक उसे मिटाया नहीं गया। निजीकरण के दौर मे गरीब ओर गरीब हो जाएंगे तो अमीर ओर अमीर होते जाएंगे।
क्युकी देश का सबसे बड़ा वर्ग खेती और मजदूरी मे लगा हुआ है, यह लोग धंदा करना नहीं जानते। सिर्फ खेती और मजदूरी करके पेट पालना जानते है। इनमे से ही कोई आगे चलके किसी सरकारी नौकरी मे लग जाता है तो उनका परिवार सुधर जाता है, थोड़े अच्छे दिन आने लगते है। अब आप कह सकते प्राइवेट मे भी तो नौकरी मिलेगी। जरूर मिलेगी पर एक बंधुआ मजदूर की मिलेगी, न सन्मान होगा न इज्जत होगी। आईटी और सॉफ्टवेयर सेक्टर छोड़के मजदूरों की जो हालत है वह काफी दयनीय है।
इन लोगों को एक अच्छा जीवन देना है तो सरकारी नौकरी की जरूरत है। आर्थिक असमानता तो सावर्णों पर भी लागू होगी।
निजीकरण का काम मुनाफा कमाना।
प्राइवेट कंपनी का काम सिर्फ मुनाफा कमाना है, उनको आपसे या आपके परिवार से कोई लेना देना नहीं। जब तक काम करोगे पगार मिलेगा नहीं किया तो कुछ नहीं मिलेगा।
कोरोना वायरस की वजह से कितनी सारी कंपनीयो ने अपने एम्प्लॉईस को निकाल दिया या छोड़ के चले गये।
जैसे एक प्राइवेट अस्पताल मे जो एम्प्लॉईस रहते है, उनको सैलरी बोहोत ज्यादा नहीं होती है। लॉकडाउन की वजह से उस कम सैलरी मे से भी 50 फीसदी अस्पताल ने काट ली थी। उन लोगों को अस्पताल मे रहकर जान तो जोखिम मे डालनी थी पर सैलरी कम मिलनी थी या नहीं मिलनी थी। इसलिए कई लोगों ने नौकरी छोड़ दी।
इस लॉकडाउन के दौर मे उनको घर चलाना मुश्किल हो गया। यह हाल प्राइवेट अस्पताल का हुआ। क्या सरकारी मे ऐसा हुआ? नहीं हुआ। क्युकी सरकार की प्राथमिकता लोग होते है न की मुनाफा।
नौकरी की सुरक्षितता।
जीवन मे आगे बढ़ने के लिए स्थिरता चाहिए। अगर आप काम पे गये और जाते ही आप को पता चले की आपको काम से निकाला गया है तो कैसा लगेगा?
नौकरी की सुरक्षा होना आवश्यक है ताकि एक अच्छा समाज का निर्माण हो सके। सरकार ने तो नए कानून मे नौकरी से कभी भी निकालने का प्रबंध कर दिया है, जिसका लोग भरपूर फायदा उठायेंगे।
कई कंपनी मे वर्कर को बारिश के वक्त निकाल देते है, मार्केट मे मंदी आयी तो निकाल देते है। ऐसे मे यह वर्ग क्या करे?
बेरोजगारी बढेगी।
निजीकरण से नौकरीया कम हो जाएगी क्युकी टेक्नॉलजी की उपयोग की वजह कंपनी को लोग कम लगेंगे। जो लोग नौकरी कर रहे होंगे उनसे ज्यादा काम करवाया जायेगा।
भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
लोगों की यह गलतफहमी है की निजीकरण मे भ्रष्टाचार नहीं होगा पर वास्तविकता मे निजीकरण भ्रष्टाचार दोनों साथ साथ चलते है। भ्रष्टाचार मे सबसे ज्यादा कमाई मैनेजमेंट और मालिक की होगी, जो आपको दिखाई भी नहीं देगी।
प्राइवेट मे भी नौकरी पर लगाने के लिए पैसे मांगे जा रहे है। जहा कोई सुरक्षितता नहीं वहा भी लोग पैसे दे कर लग रहे है।
अपराध बढ़ेगा।
जैसा लोगों की पैसा कमाने की क्षमता कम हो जाएगी तो लोग पैसा कमा ने के लिए अपराध का सहारा लेंगे। आज जहा कम अपराध होते है वहा इसकी गिनती बढ़ जाएगी।
मजूदर यूनियन कमजोर हो जाएगी।
नए लेबर बिल मे सरकार ने लेबर यूनियन को कमजोर बना दिया है। निजीकरण मे तो ये किसी काम की नहीं रहेगी। आप अपने हक के लिए आवाज भी नहीं उठा पाएंगे।
गुलाम बन जाएंगे।
प्राइवेट मे जो वर्कर होते है कभी उनसे जाके मिलिये की उनकी हालत कैसी है देखिए। एक गुलाम की ज़िंदगी जीनी पड रही है। न पैसा न पावर। फिर भी जीने के लिए काम तो करना पड राहा है।
अगर सब सोचते है की निजीकरण से अच्छे दिन आएंगे तो वह गलत सोचते है। हर कोई व्यक्ति धंदा करने के काबिल नहीं होता और कंपनी मे काम करने के लिए मजदूर तो लगेंगे। यह मजदूर किसी भी समाज के हो सकते है, सवर्ण और पिछड़े भी हो सकते है क्युकी कंपनी को किसी भी हालत मे सिर्फ अपना काम निकलना है, इसके लिए किसी का भी शोषण करने से नहीं चूकेगी।
पढे : भारत के हेल्थकेयर सेक्टर का निजीकरण ।
शिक्षा और सरकारी उद्योगों का निजीकरण किया तो देश होगा बर्बाद।
ये तो गरीब और मागास मतलब. Obc sc st को गुलाम बनाने का एक तरिका हें. और मानसिक गुलाम और लाचार भी