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नये कृषि कानून के विरोध मे केंद्र विरुद्ध राज्य सरकार कि स्थिती।

सरकार द्वारा बनाये गए तीन नये कृषि कानून को देशभर मे विरोध हो रहा है। सबसे ज्यादा इस कानून का विरोध पंजाब मे हो रहा है। पंजाब सरकार ने कृषि कानूनों को निरस्त करने का विधेयक सर्वसम्मति से पारित किया गया है। वही राजस्थान से भी इस बिल के विरोध मे विधेयक लाने की तैयारी हो रही है। जब हर तरफ से इस बिल का विरोध हो रहा है तो केंद्र सरकार ने इतने बडे कोरोना काल, जहा देश की नागरिकों की स्वास्थ सुरक्षा के तरफ ध्यान देना चाहिए था तो यह इस कोरोना काल मे यह कृषि कानून क्यू पास किया था?

न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर

हालही मे केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों पर केंद्र और पंजाब सरकार मे तनाव की स्थिती निर्माण हो गई है। विरोध प्रदर्शन के लिए किसान सड़कों पर उतर गए है। किसानों का कहना है की इस कानून के तहत उन्हे फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा। कृषि बिल के विरोध में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा देश के अन्य भागों मे प्रदर्शन हो रहा है।

केन्द्रीय मंत्री ने दिया था इस्तीफा।

केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने किसान विरोधी अध्यादेशों और विधेयकों के विरोध मे केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। केंद्र सरकार मे अकाली दल की एकमात्र प्रतिनिधि थे। अकाली दल, भाजपा की पुरानी सहयोगी पार्टी है और एनडीए गटबंधन मे शामिल है।

बादल ने काँग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था की इस पार्टी का इस मुद्दे पर दोहरा मापदंड है। 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव मे उसके घोषणापत्र मे एपीएमसी अधिनियम को खत्म करने का उल्लेख था।

विधेयक के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन।

किसान संगठनों द्वारा कृषि बिल का लगातार विरोध किया जा रहा है। 10 सितंबर को हरियाणा के कुरुक्षेत्र मे किसान संगठनों द्वारा राष्ट्रीय महामार्ग को अवरुद्ध किया था। तब पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज किया था, जिससे कई प्रदर्शनकारियों को चोटे आई थी, ऐसा दावा किसान संगठनों ने किया था।

राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के किसानों ने बिल के विरुद्ध 20 जुलाई को ट्रैक्टर-ट्रॉली निकालकर विरोध का प्रदर्शन किया था।

केंद्र के कृषि कानून के खिलाफ विधेयक।

पंजाब सरकार जिस के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कृषि कानून के खिलाफ विधानसभा मे तीन विधेयक पारित किये है। राज्य के द्वारा पारित इन विधेयकों के अनुसार अगर कोई किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य(msp) से नीचे गेहू और चावल की बिक्री करने के लिए बाध्य करता है तो उसके खिलाफ दंडात्मक कारवाई की जाएगी। साथ ही अनाज मंडी से बाहार होने वाले सभी लेनदेन पर कर लगाया जायेगा।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कृषि कानून के खिलाफ विधेयक लाने की बात कही है और इसके लिए राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जायेगा। राजस्थान मुख्यमंत्री की अध्यक्षता मे हुई बैठक मे केंद्र सरकार द्वारा केंद्र सरकार के तीन नए कानून का राज्य के किसानों पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा की गई। बैठक के बाद जारी किये सरकारी बयान के अनुसार मंत्री परिषद ने राज्य किसानों के हीत मे यह निर्णय किया की किसानों के हितों को संरक्षित करने के लिए शीघ्र ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जायेगा।

ऐतिहासिक कृषि सुधार।

केंद्र के मोदी सरकार ने इस कानून को ऐतिहासिक कृषि सुधार का नाम दिया है। उनके हिसाब से वे कृषि उपजो की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे है।

इस नए कानून मे कृषि उपज विपणन समितियो(मंडियों) के बाहार कृषि उत्पाद बेचना और खरीदने की व्यवस्था करना है। सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 मे संशोधन किया है जिससे खाद्य पदार्थों का जमाखोरी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है।

मूल्य आश्वासन पर किसान (बन्दोबस्ती और सुरक्षा) समझोता और कृषि अध्यादेश 2020 के तहत कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग को कानूनी वैधता प्रदान की है जिससे बडे उद्योग और कंपनीया जमीन कान्ट्रैक्ट पर लेकर खेती कर सके।

नए कानून के मुताबिक फसल खरीद के विवादों को दीवानी न्यायालय मे नहीं ले जा सकते।

सामान्य परिस्थितियों मे विभिन्न कृषि उत्पाद के भंडार की अधिकतम सीमा हटाने से कालाबाजारी बढने, अनधिकृत भंडारण तथा किमते बढ़ने की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता।

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1947 और 2020 का अशांत भारत देश।

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