श्री राम को अयोध्या मे घर मिल गया है और अब भगवान श्रीकृष्ण को घर दिलवाने के लिए अदालत मे लढाई हो रही है। श्री कृष्ण विराजमान ने मथुरा की अदालत मे एक सिविल मुकदमा दायर किया है जिसमे 13.37 ऐकड की कृष्ण जन्मभूमि का स्वामित्व मांगा गया है।
न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर
भारत एक सोवेरेगन, सोशलिस्ट, सेकुलर, डेमोक्रैटिक, रीपब्लिक देश है। सेकुलर देश उसे कहते है जहा की सरकार किसी भी धर्म से दूर रहती है, वह धर्मनिरपेक्ष सरकार होती है। सरकार के लिए सर्वधर्म समभाव होते है। जो किसी भी धर्म का अहित नहीं करती और किसी भी धर्म का पक्ष नहीं लेती।
सेकुलर देश मे कोई भी शासकीय धर्म नहीं होता है। यहा सभी धर्मों को मानने की मुक्तता होती है। धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। रोजगार मे भी सभी धर्म के लोगों को समान अवसर दी जाती है। जहा कोई भी किसी भी धर्म को मान सकता है।
सेकुलर देश के प्रधानमंत्री का पद एक जिम्मेदार पद होता है, जिसमे किसी भी तरहा की धार्मिक बातों से दूर रहना प्रधानमंत्री की नैतिक जिम्मेदारी होती है।
क्या भारत देश सेकुलर है?
मथुरा मे श्री कृष्ण विराजमान के लिए दायर किये मुकदमे मे शाही ईदगाह मस्जिद हटाने की मांग की गई है। अयोध्या मे श्रीराम मंदिर निर्माण की भूमि पूजन के समय वृंदावन के मुख्य पंडित गंगाधर पाठक ने पूजा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की थी की वाराणसी मे काशी विश्वनाथ एवं मथूरा मे श्रीकृष्ण जन्मभूमि भी मुक्त होनी चाहिए।
जिस तरह से एक सेकुलर देश के प्रधानमंत्री से मंदिरों के मुक्ति की मांग की जा रही है तो क्या भारत देश का सेकुलर दर्जा कायम है? या देश किसी विशिष्ट धर्म का हो गया है?
सोशलिस्ट डेमक्रैटिक भारत।
आजादी के बाद भारत देश कैपिटलिज़म को छोड़के डेमोक्रैटिक सोशलिज़म को अपनाया। डेमक्रैटिक सोशलिज़म मे मिक्स्ड ईकानमी होती है, जिसमे सरकारी और प्राइवेट सेक्टर दोनों साथ साथ चलते है। इससे देश की गरीबी, असमानता को नष्ट करने मे मदत मिलती है।
पर आज हम अपने डेमक्रैटिक सोशलिज़म से बनी मिक्स्ड ईकानमी को छोड़कर कैपिटलिज़म की ओर जा रहे है। वास्तविकता मे कैपिटलिस्ट ईकानमी भारत के लिए अनुकूल है ही नहीं क्युकी अभी भी भारत देश मे सभी प्रकार की असमानता मौजूद है, पहले उसे मिटाना पड़ेगा तभी हम कैपिटलिस्ट ईकानमी की ओर बढ़ सकते है अन्यथा नहीं जा सकते और गये तो इसका देश को नुकसान ही होगा।
मंदिर-मस्जिद की लढाई कब रुकेगी।
इतिहास मे देखे तो जहा मंदिर थे वहा मस्जिद बना दी गयी और जहा मस्जिद थी वहा मंदिर बना दिए गये। यह सिलसिला कई सदियों से चलता आ राहा है पर इसे कही तो रुकना चाहिए। क्युकी जिन्होंने पहले मंदिर या मस्जिद गिराई वह अब तो इस धरती पर नहीं है बस उनकी यादे और बाते है जो किसी के जुबान मे या कही लिखी हुई है। वह लोग अब मौजूद नहीं है।
जो लोग अब मौजूद नहीं है उनके बारे मे पढ़कर या यादे ताजा करकर अब लढाई झगड़ा करने से क्या फायदा है। वर्तमान मे तो दोनों का ही नुकसान है। देश मे अमन और शांति यही सबसे बढ़ी बात है। न भगवान मंदिर मे है और न अल्ला, दोनों ही तो दिल मे है।
अंग्रेजों से दोनों ने मिलकर लढाई की, हर कदम पर साथ रहे पर अब यह नफरत भरा माहौल क्यू है? भीमसेन जोशी के साथ जाकिर हुसैन थे, विक्रम साराभाई के साथ अब्दुल कलाम थे।
भारत देश मे जहा अनेकों धर्म के लोग रहते है उसे सेकुलर ही रखना ठीक है, न की किसी विशिष्ट धर्म का देश बनाने मे।