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कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के तहत कालाबाजारी बढ़के किसान बनेंगे बंधुआ मजदूर, जानिए क्या है?

भारत सरकार के कृषि अध्यादेश(The farmer’s(Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance And Farm Services Bill, 2020) 5 जून 2020 ने कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के तहत किसानों को व्यापारियों, कंपनीयो, निर्यातकों से सीधा जोडा है। इस विधेयक से बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों से हटकर प्रायोजक व्यक्ति अथवा कंपनी पर चला जायेगा। लेकिन इसमे अग्रीमेंट के तहत किसान पर कुछ शर्ते भी लागू होगी, जिसकी वजह से आनेवाले समय मे क्या किसान  बंधुआ मजदूर बन जायेंगे?

न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर

कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) किमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 के तहत किसान को सीधा व्यापारी, कंपनी और निर्यातकों से जोडा जायेगा। इसके लिए किसान और व्यापारी, कंपनी या निर्यातकों से कृषि करार होगा, जिसमे बुवाई से पहले किसानों की उपज के दाम दोनों पार्टीयो द्वारा निर्धारित किये जाएंगे। दाम बढ़ने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ भी मिलेगा।

कृषि करार (Farm Agreement) :

कृषि करार यह किसान और प्रायोजक या किसान, प्रायोजक और किसी भी तीसरी पार्टी के बिचमे लिखा हुआ अग्रीमेंट होगा जिसमे निर्धारित गुणवत्ता की फसल का पालन-पोषण और उस फसल को खरीदने के बारे मे लिखा हुआ होगा।

फसल के निर्माण के समय फसल की मालकीयत किसान के पास होगी और प्रायोजक या कंपनी अपने निर्धारित किमत पर उस फसल की डेलीवेरी लेगी।

प्रायोजक या कंपनी कृषि सेवाये देने के लिए तथा जो फसल निकलेगी उसमे पूर्ण अथवा अंशतः जोखिम लेने के लिए तैयार होगी और किसान ने दि हुई सेवा का मोबादला देने के लिए सहमत होगी।

किसान की फसल खराब होती है या उगती नहीं है तो इसकी जिम्मेदारी प्रायोजक या कोई कंपनी पूर्ण भी ले सकती है और थोडी भी ले सकती है। अगर थोडी सी ही जिम्मेदारी लेगी तो किसान का वैसे भी नुकसान हो ही जायेगा। मानलों कंपनी ने 10 फीसदी जोखिम उठाली तो किसान को तो पूरा नुकसान होगा, कंपनी से उसे किमत भी नहीं मिलेगी और सरकार से भी कुछ नहीं मांग पाएगा।

कृषि करार का कालावधी।

कृषि करार का कम से कम कालावधी एक फसल के मौसम या पशुधन निर्माण का एक चक्र होगा और जादा से जादा 5 साल तक होगा।

अगर कृषि उत्पाद का समय 5 साल से ज्यादा होता है तो किसान और कंपनी मिलकर कृषि करार का समय तय करेंगे।

कोई कंपनी अगर पाँच साल तक यह अग्रीमेंट कर लेती है तो वह किसान तो पाँच साल के लिए बंद जायेगा। छोटे किसान इस चंगुल से निकल नहीं पायेंगे और कही शिकायत भी नहीं कर पायेंगे।   

फसल की गुणवत्ता।

कृषि करार मे आने वाले सभी को फसल की गुणवत्ता और स्टैन्डर्ड के साथ काम करना होगा, जो दोनों के सहमति से हो। किटकनाशक की गुणवत्ता, खेती करने की पध्दत और मजदूर इनके भी स्टैन्डर्ड रखने पड़ेंगे।

जब किसान इस अग्रीमेंट मे आयेगा तो उसे सभी गुणवत्ता और मापदंडों का पालन करना पड़ेगा। फसल की बुवाई या उसके कटने या वितरण के समय कोई तीसरा व्यक्ति आकार फसल का परीक्षण करेगा और फसल की गुणवत्ता निश्चित करेगा। फसल के दौरान कंपनी को फसल की गुणवत्ता चेक करनी पड़ेगी।

यह सारा काम तो एक छोटा किसान बिल्कुल ही नहीं कर पाएगा। वह सारे स्टैन्डर्ड के साथ खेती नहीं कर पाएगा और कंपनी इस आधार पर उससे अग्रीमेंट नहीं करेगी। यह काम तो बडे किसान ही कर पायेंगे।   

फसल टैक्स फ्री होगी और काला बाजारी बढेगी।

इस कानून के तहत किये हुए करार मे उत्पादन किये हुए उत्पाद को राज्य सरकार के कानून लागू न होकर उस पर टैक्स नहीं लगेगा, यह उत्पाद पूर्ण रूपसे टैक्स फ्री रहेगा।

आवश्यक वस्तु कानून, 1955 के तहत या इसके अंतर्गत दिए गए नियंत्रक आदेश या अस्तित्व मे हुए किसी भी आदेश के साथ शेतमाल(उपज) को भंडारण की कोई सीमा नहीं रहेगी। कोई भी कितना भी माल का भंडारण कर सकता है।

कंपनी की भंडारण सीमा हटा दि गई तो कंपनी कम दाम मे फसल उगाके, उसका भंडारण करके कई गुना ज्यादा किमत पर बेच सकती है। इस पर सरकार का कोई रोक नहीं रहेगा।

कृत्रिम तरीके से अनाज या अन्य उपज की कमी निर्माण करके उसे लागत से कई ज्यादा किमत पर बेच देगे या फिर उस को विदेश भेज देगे, जहा से भी कंपनी को फायदा मिलेगा वह रास्ता चुनेगी क्यूकी कंपनी को न तो किसान और न लोगों से कोई लगाव है, वो तो बस अपना मुनाफा देखती है।

एग्रीगेटर।

एग्रीगेटर यह एक ऐसी व्यक्ति है जो प्रायोजक या कंपनी और किसान के बीच मे काम कर सकता है। यह व्यक्ति गाव के किसानों को एकठ्ठा करके, कंपनी और किसान के बीच का आदमी की तरह काम करेगा। या यह व्यक्ति उन किसानों की तरफ से कंपनी के लिए काम करेगा या कंपनी के तरफ से किसानों के लिए काम करेगा।

विवाद का निपटारा।

अगर किसान और कंपनी के बीच कुछ विवाद उत्पन्न होता है तो इसके निवारण के लिए सब डिवीसीनल मैजिस्ट्रैट के पास जा सकते है। सिवल कोर्ट मे इस विवाद को लेके नहीं जा सकते है।

इससे जुड़ा कोई भी मामला सिविल कोर्ट के दायरे मे नहीं आयेगा। जो भी निष्पक्ष न्याय होगा वह न्यायालय के बाहार होगा। जहा न्यायालय मे ही न्याय की उम्मीद नहीं रहती वहा सरकरी अधिकारी कैसे निष्पक्ष न्याय देगे।

क्या किसान बंधुआ मजदूर बनेंगे?

जो छोटे छोटे किसान है उनके पास जीने के दो ही रास्ते होते है या तो फसल उगाओ या मजदूरी करो। इस व्यवस्था के साथ तो कोई छोटा किसान नहीं जुड़ सकता उसे किसी बीचमे के व्यक्ति के साथ मिलकर काम करना होगा। जो इन छोटे छोटे किसानों को एकठ्ठा करके उनके एवज मे कंपनी से अग्रीमेंट करे और कंपनी से मिले मुनाफे का मोटा हिस्सा खुद रख दे और थोड़ा सा किसान को दे दे।

ऐसे मे किसान को अपनी ही खेती पर मजबूरी से एक बंधुआ मजदूर की तरह काम करना पड सकता है। यह तो वही जमीनदारी वाली व्यवस्था हो गई जिसे हटाने के लिए पिछली सरकारो को काफी प्रयत्न करने पड़े थे।  

उपज क लिए रहेगी कंपनी की मनमानी।

उपज लेने के लिए कंपनी की मनमानी चलेगी। कंपनी वही फसल या उपज खेतों मे से निकालेगी जिससे ज्यादा मुनाफा होगा। किसी भी एक ही तरह की वस्तु की खेती करने के लिए किसान को बाध्य किया जा सकता है।  जिसकी वजह से आवश्यक वस्तुओ की मार्केट मे कमी हो सकती है और कालाबाजारी बढ सकती है।  

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