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डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का धर्मांतर करना क्यू जरूरी था? क्यों हिन्दू धर्म से अलग होने की घोषणा की थी?

13 अक्टूबर 1935 को येवले(नाशिक) मे डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने धर्मानंतर की घोषणा की थी। अपने समाज को स्वतंत्र करने की बात की थी। क्या धर्मांतर ही एकमात्र इलाज था? हिन्दू धर्म मे होते हुए आखिर ऐसी कोनसी बात थी जिसकी वजह से धर्मांतर की घोषणा करनी पड़ी?

न्यूज मेडियेटर्स – आकाश वनकर

दलित समाज जो हजारों सालों से अछूत की जिंदगी जी रहा था। जिसको समाज मे रहने के लिए कई सारे बंधन थे। उच्च वर्ग के तरफ से हर तरह का अन्याय होता था। पर अन्याय से मुक्त करने की ताकत किसी भी समाजसुधारक मे नहीं थी। कई समाजसुधारकों ने प्रयत्न किए पर सफल नहीं हो पाए क्युकी वो दर्द उच्च वर्ण के समाजसुधारक नहीं जान पाये। ऐसे मे उसी समाज से एक महिसा का जन्म होता है, जो हजारों सालों की गुलमगिरी को अपने यथाशक्ति से नष्ट कर देता है। लोगों को जीने के लायक बना देता है और वही मसीहा है डॉ भिमराव रामजी आंबेडकर।

1935 मे भारत देश अंग्रेजों का गुलाम था और कई लोग अंग्रेजों की गुलामी के विरुद्ध लढ रहे थे। पर इसीमे एक समूह था, जो इन अंग्रेजों के गुलामों का भी गुलाम था। उसे गुलामी से मुक्त करने के लिए नहीं कोई उठा और न किसी ने शस्त्र उठाए। जो लोग अंग्रेजों के विरुद्ध लढ रहे थे, उन्हे अपनी गुलामी दिखी पर इस दलित समाज की गुलामी शायद नहीं दिखी या वह देखना ही नहीं चाहते थे।

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, “हिन्दू धर्म असमानता पे निर्भर है। इसलिए हिन्दू धर्म दलितों के लिए बेकार है। हिन्दू धर्म की असमानता ही धर्मांतर का मूल कारण है। इसलिए यह धर्मांतर”।

सामाजिक और धार्मिक अन्याय का कारण।

जब दलितों को सरकारी स्कूल मे पढने का हक दिया गया, कुअे पे पाणी भरने का हक दिया गया, घोड़े पर बारात निकालने का हक दिया गया तब उच्च जाती के हिन्दुओ ने उन्हे मारा-पीटा। आज भी समाज मे इन चीजों के लिए दलितों को मारा-पीटा ज्याता है। जो उस व्यक्त परिस्थिति थी वह आज भी है।

इस कारणों के अलावा अन्याय करने के बडे ओर भी अजब गजब कारण थे। जैसे अगर कोई दलित उचे कपडे पहन लिए तो उसे मारा जाता था। किसी ने गहने पहने तो उसे मारा जाता था। पाणी लाने के लिए तांबा-पीतल के बर्तन उपयोग मे लाए तो मारा जाता था। जमीन खरीदा इस लिए जलाया जाता था। मरे हुए पशु को नहीं लेके गए या उसका माँस नहीं खाया तो मारा जाता था।

पैरों मे जूते और मोजे पहनकर गाव मे गया इसलिए, उच्च वर्ग के हिन्दू को जौहर नहीं किया तो, शौच के लिए तांबे मे पानी लेके गए इसलिए दलितों का उत्पीड़न किया गया। पंचों की पंगत मे रोटी परोसने के कारण मारा जाता था।

जहा पर मार नहीं सकते थे वहा बहिष्कार का सूत्र उपयोग मे लाते थे, जैसे काम का वेतन नही देना, खेतों-जंगलों से पाले हुए पशुओ को नहीं जाने देना, दलितों को गाव मे आने के लिए बंदी कर देते थे। ऐसे और अनेकों प्रकार के जुल्म दलितों पर किए जाते थे और यह जुल्म सहकर ये समाज चुपचाप रहता था। कितनी मुश्किलों का सामना करके इन सबको रहना पडता था।

इन सब जुल्म जागती और छुआछूत की बीमारी से मुक्त होने के लिए धर्मांतर करना ही एकमात्र इलाज था। ताकि इस जुल्म से बचा जा सके। इंसानों को इंसान होने के हक मिल सके।  

उच्च नीच की लढाई।

सवर्ण और दलितों मे हजारों सालों से उच्चता और नीचता का लढाई झगडा था। यह किसी एक व्यक्ति की बात नहीं थी तो यह पूरे समूह पर हो रहे अत्याचार की बात थी। एक वर्ग ने दूसरे वर्ग के अधिकार छीनने की बात थी। यह लढाई झगडा सिर्फ समाज मे अपना उच्च दर्जा रखने के लिए था। सवर्ण खुदकों उचे और दलितों को नीचा समझते थे।  

दलित किसी भी तरहा से समाज मे सावर्णों के बराबर नहीं रह सकता था। अगर किसी दलित ने उचे कपडे पहन लिये, गहने पहने, तांबे के बर्तन का उपयोग किया या बारात मे घोड़ी पर बैठा, इसमे किसी व्यक्ति और समाज का तो कोई नुकसान नहीं था। फिर सावर्णों को इससे क्या समस्या थी, जो इसके लिए मारा-पीटा करते थे?

यह उच्च-नीचता की लढाई कोई एक या दो दिन की नहीं थी। यह लढाई हजारों सालों से चल रही थी और आगे भी चलने वाली थी क्युकी हिन्दू धर्म ने ही वह दर्जा दिया था। इसलिए उसे बदल नहीं सकते थे। यह उच्च नीचता का दर्जा तो हमेशा ही रहने वाला था।

इस उच्च नीचता की लढाई से बाहार निकलने के लिए धर्मांतर जरूरी था। ताकि एक दलित दूसरे धर्म मे जाकर  समाज मे अच्छा स्टैटस पा सके।  

दलितों का ही उत्पीडन क्यू होता था?

दलित के पास ताकत नहीं थी और गाव मे दो चार ही घर होते थे। इसलिए दलितों पर उच्च वर्णियों द्वारा अत्याचार किए जाते थे। वही दूसरी तरफ मुस्लिम भी तो अल्पसंख्यांक थे और उनकी भी तो गाव मे दो चार की घर रहते थे, पर उनको कोई उच्च वर्गीय हिन्दू तकलीफ नहीं देते थे।

क्यू मुस्लिम लोगों को उच्च वर्ग के हिन्दू तकलीफ नहीं देते थे? क्युकी इन दो चार मुस्लिम घरों के पीछे पूरे हिंदुस्तान के मुस्लिम समाज की शक्ति और ताकत खडी थी, इसलिए कोई हिन्दू किसी मुस्लिम को तकलीफ नहीं देता था। वही उच्च हिन्दू को पता था की दलित के पीछे कोई नहीं है। कोई इसके मदत के लिए नहीं आने वाला है। मामलेदार और पुलिस भी दलित और सावर्णों की लढाई मे उच्च वर्ग का ही साथ देते थे।

जब हिन्दू धर्म से कोई साथ नहीं मील रही थी और अन्याय खतम होने का नाम नहीं ले रहा था। इसलिए हिन्दू धर्म को छोडकर दूसरे धर्म मे जाना अनिवार्य हो गया था ताकि दूसरे धर्म के लोगों की ताकत मिल सके।

हिन्दू धर्म को बाबासाहेब ने बचाया यही उनकी देशभक्ति है।

बाबासाहेब के धर्मांतर की घोषणा के बाद डॉ.एम.बी.वेलकर इनके नेतृत्व मे हिन्दुओ का शिष्ठमण्डल डॉ आंबेडकर को मिलने गया क्युकी उनको डर था के अगर मुस्लिम या ख्रिस्ती धर्म डॉ आंबेडकर ने अपना लिया तो हिन्दू धर्म को खतरा हो सकता है। तब उस हिन्दू शिष्ठमण्डल को बाबासाहेब ने कहा की “ भारत देश के हित को खतरा होगा, ऐसा धर्मांतर मै नहीं करूंगा, इस बारे मे आप निश्चिंत रहे”।

डॉ आंबेडकर ने अपने भाषण मे एक बार भी ऐसा नहीं कहा की मेरे साथ मे महार समाज ने मुस्लिम या ख्रिस्ती धर्म अपनाए। हालाकी सभी धर्मों की तरफ से उनको पत्र आए थे।

मुस्लिम या ख्रिस्ती धर्म न अपनाकर बाबासाहेब ने हिन्दू धर्म को बिखरने से बचाया। यही उनका सच्ची देशभक्ति का सबूत है। और अपनाया वो भी भारतीय बौद्ध धम्म है। इससे तो बाबासाहेब की देश पर की निष्ठा पर कोई सवाल खड़े नहीं कर सकता। जब की मुस्लिम या ख्रिस्ती धर्म अपनाना फायदे का सौदा था, लेकिन उन्होंने नहीं अपनाया।

धर्मांतर के लिए हिन्दू महासभा के श्रीशंकराचार्य का मिला था साथ।

हिन्दू महसभा के नेते डॉ. मूंजे, बॅ. जयकर, रामानंद चटर्जी, बिरला और स्वयं श्रीशंकराचार्य(डॉ. कुर्तकोटी) इनकी तरफ से बाबासाहेब को धर्मांतर के लिए प्रोत्साहन मिला है। 1936 को अक्टूबर महीने मे 21 से 23 तारीख को लाहोर मे श्रीशंकराचार्य (डॉ. कुर्तकोटी) इनकी अध्यक्षता मे हिन्दूमहासभा का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन मे अपने अध्यक्षीय भाषण मे श्रीशंकराचार्य (डॉ. कुर्तकोटी)  कहा की “ फिलहाल की परिस्थिति मे हिन्दू समाज मे अछूत प्रथा अस्तित्व मे रहने देना सर्वथा अयोग्य है। हमने दलितों को मानवता के हक से दूर रखा, यह हमारी गलती है और इस गलती को मानके दलितों की क्षमा माँगके उनको पास मे लेना चाहिए”।

छुआछूत मिटाने के अथक प्रयत्न के बाद जब लोगों की मानसिकता बदलने के लिए तैयार नहीं थी। ऐसे मे धर्मांतर ही एक मात्र पर्याय रह गया बाबासाहेब के आगे मे, जिससे इस छुआछूत की बीमारी से मुक्त हुआ जा सकता था।   

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